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दर्शनसार ।
मरीचिश्च गुरोर्नप्ता परिव्राइभूयमास्थित.। मिथ्यात्ववृद्धिमकरोदपसिद्धान्तभापितैः ॥ ६१॥
तदुपज्ञमभूयोगशास्त्रं तंत्रं च कापिलम् ।
येनायं मोहितो लोकः सम्यग्ज्ञानपराड्मुखः ॥ ६२॥ अर्थात् भगवानका पोता मीच भी ( अन्यान्य लोगोंके साथ ) परिव्राजक हो गया था। उसने असत्सिद्धान्तोंके उपदेशसे मिथ्यात्वकी वृद्धि की । योगशास्त्र (पतनलिकादर्शन) और कापिल तंत्र (सांख्य शास्त्र ) को उसीने रचा, जिनसे मोहित होकर यह लोक सम्यग्ज्ञानसे विमुख हुआ। आदिपुराणके इन श्लोकोंसे मालूम होता है कि सांख्य
और योगका प्रणेता मरीचि है, परन्तु वास्तवमें सांख्यदर्शनके प्रणेता कपिल और योगशास्त्रके कर्ता पतनाल है। दर्शनसारकी चौथी गाथासे इसका समाधान इस रूपमें हो जाता है कि मरीचि इन शास्त्रोंका साक्षात प्रणेता नहीं है । अवश्य ही उसने अपना विचित्र मत बनाया था, उसी रद्दोबदल होता रहा और फिर वही सांख्य और योगके रूपमें एक बार व्यक्त हो गया। अर्थात् इनके सिद्धान्तोंके बीज मरीचिके मतमें मौजूद थे । सांख्य और योग दर्शनोंके प्रणेता लगभग ढाई हजार वर्ष 'पहले हुए हैं। पर ऋषभदेवको हुए जैनशास्त्रोंके अनुसार करोड़ों ही नहीं किन्तु अबौं खर्बोसे भी अधिक वर्ष बीत गये हैं। उनके समयमें सांख्य आदिका मानना इतिहासकी दृष्टिसे नहीं बन सकता । श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थोंमें भी मरीचिको सांख्य और योगका प्ररूपक माना है।
७पाँचवी गाथामें जो पॉच मिथ्यात्व बतलाये है, वे ही गोम्मटसारके जीवकाण्डमें भी दिये हैं:
एयंतं विवरीयं विणयं संसयिदमण्णाणं । वहाँ पर इन पॉचोंके उदाहरण भी दिये हैं: