Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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जिनागमों की मूल भाषाअप्रैल, १९९७
श्रमण, जनवरी-जून-२०००
89. Place of ardhamāgadhi and Śauraseni
Languages of Jain Canonical works in
the Evolution of MIA. Languages. २०. शुब्रिग महोदय द्वारा सम्पादित आचाराङ्ग
और इसिभासियाइं की भाषा की तुलना २१. वररुचि और हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत व्याकरणों ।
की श्रीमती नीति डोल्ची द्वारा की गयी आलोचना
का मूल्यांकन २२. 'प्रवचनसार' में छन्द की दृष्टि से पाठों का संशोधन २३. वसुदेवहिंडी के क्रिया रूप २४. पाइय-सद्द-महण्णवो में अनुपलध वसुदेवहिण्डी
की शब्दावली (२) २५. जैन पुराण साहित्य २६. प्राचीन आगम-ग्रन्थों का सम्पादन २७. आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में स्वीकृत कुछ
पाठो की समीक्षा २८. जैन धर्म का प्रसार २९. भगवान् महावीर मात्र कर्मवादी या पुरुषार्थवादी भी ? ३०. 'षट्प्राभृत' के रचनाकार और उसका रचनाकाल ३१. आचारांग में भगवान् महावीर के मौलिक उपदेश
पं. बेचरदास दोसी कोसे. वोल्यु. जैन धर्म का प्रसार
सम्यक् विकास,
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