Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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लेखों की सूचि
१. राक्षस: एक मानव वंश
२. विमलसूरि और रविषेण का काल निर्णय
३. शृंगारमञ्जरी की शब्दावली
४. प्राकृत - दशवैकालिकसूत्र में हिन्दी शब्द - गवेषणा
५. भगवान् महावीर के जन्म-स्थल के विविध उल्लेख
६. कुवलयमाला की मुख्य कथा और अवान्तर कथाएँ
७. पालि से अन्य प्राकृतों की तरफ
८. वैदिक युग की भाषा में प्राकृत- सदृश भाषाकीय तत्त्वों की उपलब्धि
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९. आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध में स्वीकृत कुछ पाठों की समीक्षा
१०. भारत की प्राचीन भाषाओं में फारसी शब्द
११. आचारागं की भाषा की प्राचीनता की पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता
१२. अर्धमागधी भाषा और आचार्य श्री हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण
१३. प्राकृत व्याकरण (वररुचि बनाम हेमचन्द्र अन्धानुकरण या विशिष्ट प्रदान)
१४. आचारांग एवं कल्पसूत्र में वर्णित महावीर चरित्रों का विश्लेषण एवं उनकी पूर्वापरता का प्रश्न
१५. भरतमुनि द्वारा प्राकृत को संस्कृत के साथ प्रदत्त सम्मान और गौरवपूर्ण स्थान
१६. जिनागमों का सम्पादन (हमारा दृष्टिकोण)
१७. अर्धमागधी भाषा में सम्बोधन का एक विस्मृत शब्द प्रयोग 'आउसन्ते'
१८. पं. श्री बेचरभाई दोशी का प्राकृत व्याकरण शास्त्र को महत्त्वपूर्ण प्रदान
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श्रमण, नवम्बर-दिसम्बर १९६६ परिषद्-पत्रिका जुलाई १९६७ जैन पुराण साहित्य, १९६८ परिषद्-पत्रिका जान्यु. १९६९ विश्वभारती पत्रिका, १९७०
श्रमण, जुलाई १९७५
विद्या ओगस्ट, १९७८
विद्या, ओगस्ट १९८१
विद्या, ओगस्ट, १९८२
ऑगस्ट, १९८६
१९८६
संबोधि,
१९८९
हैम-वाड्मय - विमर्श,
जैन विद्या के आयाम, १९९१
श्रमण, मार्च, १९९१
१९९०
तुलसी प्रज्ञा, १९९३
श्रमण, १९९५
विद्यापीठ, सप्टेम्बर, १९९५
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