Book Title: Chobisi Puran Author(s): Pannalal Jain Publisher: Dulichand Parivar View full book textPage 8
________________ .. चौबीम नीकर पुराण mememarwarowarmeramewomaamso weremonymroomw LEASED चंचल और बड़ी घड़ी ऑखों ले हरिणियों को जीनती थी। उसकी भौहाय के धनुप के समान थीं। चुम्कुम के तिलक से उसके ललाट की अनूठी ही शोमा नजर आती थी, उसके काले और घर वाले बालों की शोभा बड़ी ही विचित्र थी। मनोहरा के मुंह केमामने पूर्णिमा के चन्द्रमा को भी मुँहकी खानी पड़ी थी। उसका सारा शरीर ताये हुये नुवर्ण की तरह चमकना था। कोई उसे पकाएक देवकर विद्याधरी कहने का साहस नहीं कर पाता था। सचमुच वह मनोहरा अद्वितीय सुन्दरी थी। राजा अनिवल रानी मनाहग के साथ अनेक तरह के सुग्व भोगते हुये मुख से समय बिताते थे। कुछ समय वाद मनोहरा की कुक्षि से एक बालक उत्पन्न हुआ। चालक के जन्मकाल में अनेक शुभ शकुन हुये । राजा ने दीन दरिद्रों के लिंगे किमिच्छक दान दिया और प्रजा ने अनेक उत्सव मनाये। बालक की बीर चेप्टायें देखकर राजाने उसका नाम महाबल रख दिया। बालक महावल द्वितिया के चन्द्रमा की तरह प्रति दिन बढ़ने लगा। उसकी अद्भुन लीलायें और मीठी बोली सुनकर मा का हृदय फुला न समाता था। उसकी बुद्धि पड़ी ही तीक्षण थी। इसलिये उसने अल्प वयमें ही समस्त विद्या सीख ली पुत्र की चतुराई और नीति निपुणता देखकर राजा अतिवल ने उसे युवराज बना दिया और आप बहुत कुछ निश्चिन्त होकर धर्म ध्यान करने लगे। एक दिन कारण पाकर अतिबल महाराज का हृदय संसार से विरक्त हो गया। उन्हें पंच इन्द्रियों के विषय क्षणभंगुर और दुःखदाई मालूम होने लगे। वारह भावनाओं का विचार कर उन्होंने जिनदीक्षा धारण करने का दृढ निश्चय कर लिया। फिर मंत्री सामन्त आदि के सामने अपने विचार प्रगट करके युवराज मयाबल को राज्य तथा अनेक तरह के धार्मिक और नैतिक उपदेश देकर किती निर्जन वन में जिन दीक्षा धारण कर ली। इनके साथ में अनेक विद्याधर राजाओं ने भी जिन दीक्षा ली थी। उधर आत्मशुद्धि के लिये अतिबल महाराज कठिन से कठिन तप करने लगे और इधर महावल भी नीति पूर्वक प्रजा का पालन करने लगा। महावल की शासन प्रणाली पर समस्त प्रजा मुग्धवित्त थी । धीरे धीरे महाबल का यौवन विकसित होने लगा। जावानी के EVERE - 3T DPage Navigation
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