Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 7
________________ * चौवीस तीर्थकर पुराण * The - प्रकारके उत्सव होते रहते हैं। कहीं तालाबोंमें फूले हुए कमलोंपर भूमर गुञ्जार करते हैं। कहीं बगीचे में वेला गुलाब चम्पाजूही आदिकी अनुपम सुगन्धि फैल रही है। कहीं शरदके मेधके समान सफेद महलोंकी छतोंपर विद्याधरांगनायें बिजली जैसी मालुम होती हैं। कहीं पाठशालओंमें विद्यार्थियोंकी अध्ययन ध्वनि गूंज रही है और कहीं विद्वानों में सुन्दर तत्व चर्चाएं होती हैं। कहीं कोई खाने पीनेके लिये दुखी नहीं है-सभी मनुष्य सम्पत्तिसे युक्त हैं। निरोग हैं और बाल बच्चोंसे विभूषित हैं अलका अलका ही है-उसका समस्त वर्णन करना लेखनीसे बाहर है। जिस समयकी कथा लिखी जाती है उस समय अलका का शासन सूत्र महाराज अतिबलके हाथमें था। उस वक्त अतिवल जैसे वीर, पराक्रमी, यशस्वी दयालु और नीति निपुण राजा पृथ्वीतल पर अधिक नहीं थे। उनकी नीति निपुणता और प्रजा वत्सलता सब ओर प्रसिद्ध थी। वे कभी सूर्य के समान अत्यन्त तेजस्वी होकर शत्रुओं को संताप पहुंचाते थे और कभी चन्द्रमा की भाँति शान्त वृत्ति से प्रजा का पालन करते थे। उनकी निर्मल कीर्ति चारों ओर फैल रही थी। अतिवल के व्यक्तित्व के सामने सभी विद्याधर नरेश अपना माथा झुका देते थे। वे समुद्रसे गम्भीर थे, मेरुसे स्थिर थे, वृहस्पतिसे विद्वान थे, और थे मर्य से भी अधिक तेजस्वी। महाराज अतिबलकी स्त्रीका नाम 'मनोहरा' था। मनोहरा का जैसा नाम था वैसा ही उसका रूप भी। उसके पांव कमल के समान सुन्दर थे और नाखून मोतियों से चमकते थे। जंघायें कामदेव की तरकस के सदृश मालूम होती थीं और स्थूल ऊरू केलेके स्थम्भ से भी भली थी । उसका विस्तृत नितम्ब स्थल बहुत ही मनोहर था। मनोहरा की गम्भीर नाभि श्यामल रोस राजि और कृश कमर अपनी शानी नहीं रखती थीं। उसके दोनों स्तन शृङ्गार सुधा से भरे हुये सुवर्ण कलश की नांई मालूम होते थे । भुजायें कममिनी के समान मनोहर थीं और हाथ कमलों की शोभा को जीतते थे । उसका कंठ शंख सा सुन्दर था। ओष्ठ प्रवाल से और दांत मोती से लगते थे । उसकी बोली के सामने कोयल भी लजा जाती थी। तिलक पुष्प उसकी नाक की बराबरी नहीं कर सका था। वह अपनी RAISEDITORIA

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