Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 5
________________ श्रांतीनगाय नम: चौबीच तीर्थकर पुराण । भगगन आदि नाथ म विश्ववच पभो उचितःमतां समग्र विद्यान्मवपु निरञ्जनः । पुनातु चेतो ममनाभिनन्दनों जिनो जिन क्षुल्लक बादिशामनः ।। -भावायं मनतमन "मयको देवनवाले, सज्जनांस पृजिन, समस्त विद्यामय, पाप रहित नया क्षुद्र वादियोंक शासनोंको जीननेवाले व नाभिनन्दन भगवान ऋषभनाथ हमारे हृदयको पवित्र करें। इस यध्रलोकमें असंख्यानद्वीप समुद्रोस विग हुआ एक लाड योजना विस्तारवाला जम्बूद्वीप है। यह जम्वृद्रोर सब द्वीपोंमें पहला द्वीप है और अपनी गोभासे मबमें गिर मौर है! इसे चारों ओरसे लवग मन्द्र यर हुर है । लवण समुद्र के बीच समुद्र में यह जम्बुद्वीप ठीक कमन्टके समान मालूम होना है। क्योंकि कमलके नीचे जैसे मोड मृणाल होती है वैसे हो इसके नीचे बन वर्ण शेप नाग है। कमलके जर जैसे पीली कर्णिका होती है वैसे ही इमर लवर्गमय-पीला मेन्पर्वत है। और कमन्नसी कर्णिकार जिस प्रकार का भौर मंडरान रहते हैं उसी प्रकार मेन्पचर इर्णिका पर भी काल काल मेव मंडगने रही है। हिमवान, महाहिमवान, निरथ, नील, सनी और शिखरी ये छः कुलाचल जम्बूद्वीपकी शोभा बढ़ा रहे हैं। ये छहों अलाचन पूर्वसे पश्चिम नम लम्बे हैं। अनक नरहके रत्नास जड़े हुए हैं और अपनी उत्तुंग शिखगेसे गगन चुमने हैं। इन छह अवनि कारण जन्बीरले सात विभाग अर्थात् क्षेत्र हो गये हैं। उनके नाम ये हैं:-भरन, हैनबन, हरि, विदेह, रम्यक, हरण्यवत और परावन ! उन्ही क्षेत्रों में हमेशा लहरानी हुई सिन्धु आदि

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