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चौलुक्य चंद्रिका] मुममुनिके वाद गद्दीपर बैठनेवाले अनन्तपालके द्वितीय लेख शक १०१६ वालेमें पाया जाता है। मुममुनीके उत्तराधिकारी अनन्तपालके प्रथम लेख शक १००३ वाले में बन्धुओं उपद्रवका उल्लेख नहीं है । और इसी वर्षके जयसिंहके शिला शासनमें उसके लाट विजयका उल्लेख है । इसलिये हम कह सकते हैं कि मुममुनि शक १००३ के पूर्व मारा गया था और उसका पुत्र अनन्त गद्दीपर बैठा। किन्तु जयसिंहने उसे हटाकर दुसरेको अपना प्रतिनिधि बनाया।
अनन्त जैसाकि हम ऊपर बता चुके हैं शक १००३ में अपने पिता मुममुनिके मारे जाने बाद गद्दीपर बैठा। परन्तु उसे गद्दीसे उतार युवराज जयसिंहने दूसरेको बैठाया। जिसे अनंतपाल जयसिंहके पराभव पश्चात १००९ और १०१६ के मध्य हटाकर पुनः गद्दीपर बैठा। और इसके इसी घटनाका इसके शक १०१६ बाले लेखमें अलंकारिक भाषामें वर्णन किया गया है। कथित लेखके अलंकारको छोड़तेही स्पष्टतया हमारी धारणाका समर्थन होता है। अनंतपालने कबतक राज्य किया इसका कुछभी परिचय नहीं मिलता। और न उसके बाद वंशावलीका क्रम मिलता है। हां, अनंतपालके बाद ६ शिल्हाराओंको थाना जिलामें राज्य करते पाते है। परन्तु यह ज्ञात नहीं होता कि उनका परस्पर क्या संबंध था। उसी प्रकार अनंतपालके बादवाले अपरादित्यका उसके साथ क्या संबंध था अद्यावधि अज्ञेय है।
अपरादित्यका शक १०६० वाला लेख प्राप्त है, इससे केवल इतनाही ज्ञात होता है कि वह शिल्हार वंशका था और सामन्त रूपसे अपने अधिकार पर शासन करता था। हमारे पाठकोंको ज्ञात है कि अनंतपाल शक १००३ के आसपास गद्दीपर बैठा था, और इसका प्रथम लेख शक १००३ और दुसरा १०१६ का है। अतः अनंतपाल और अपरादित्यके मध्य ४४ वर्षका अन्तर पड़ता है। केवल ४४ वर्षके अन्तरमेंही कोई अपने पूर्वजोंका परिचय नहीं भूल सकता। अतः हम कह सकते हैं कि अपरादित्य अनंतपालका जाति बन्धु होते हुए भी निकटतर संबंधी नहीं था। संभवतः जयसिंहके पुत्र विजयसिंहने जब शक १०१२-१३ के मध्य सह्याद्रि उपत्यका पर अधिकार किया तो अपने पांव जम जाने बाद उसने शक १०१६ के पश्चात किसी समय अनन्तपालको ठोकपीट कर गद्दी से हटा अपने किसी शिल्हार वंशी सेनापतिको गद्दी पर बैठाया होगा । और उसके अधिकारमें नाम मात्रका अधिकार रह गया होगा । यही कारण है कि अपरादित्यके उक्त लेखमें अनंतपालके साथ उसके सम्बन्धका परिचय
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