Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 282
________________ चौलुक्य चन्द्रिका 1 १६२ समीप बसा था और संप्रति वसन्तपुर का अवशेष अन्तापुर के रूपमें पाया जाता है । पाठकों से आग्रह है कि विशेष विवरणके लिए बीरसिंह के कथित शासन पत्र का विवेचन अवलोकन करे। प्रशस्ति में चौथे स्थान बासुदेवपुर का उल्लेख है । श्लोक २० से प्रगट होता है कि भीम ने अम्बीका और कुलसनी नदियों के मध्य बेणुवन के बीच बिष्णु मन्दिर से युक्त बासु देवपुर नामक भव्य नगर बसाया था। श्लोक ३० के उत्तराध से प्रगट होता है कि रामदेव ने बासुदेवपुर को अपनी राज्यधानी बनाया। इसके अतिरिक्त बासुदेवपुर के संबंध में कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता । अतः हमें बिचारना है कि प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर कहां पर अवस्थित था और संप्रति उसका अस्तित्व है या नहीं। प्रशस्ति के अतिरिक्त दुर्भाग्य से हमारे पास बासुदेवपुर का ज्ञापक अन्य साधन नहीं है। अतः हमें बासुदेवपुर के अवस्थान और वर्तमान अस्तित्व निर्णय करने मे केवल अनुमान और बामप्रमाणों से काम लेना होगा । अम्बीका नदी संह्याद्रि पर्वत के मूल से पस्चिम उत्तर भावी डांग नामक भूभाग के पहाड़ों से प्रारंभ होती और प्रथम कुछ दूर लगभग १५-२० मील तक सीधे पश्चिम बह कर कुछ दूर उत्तराभिमुख बहती हैं । अनन्तर पश्चिमाभिमुख मार्ग का अवलम्बन कर बडोदा राज्य के व्यारा नामक तालुका में प्रवेश करती और पश्चिमोत्तर गामी होती है। एवं व्यारा तालुका का अतिक्रमण कर ब्रिटीश इलाके के सूरत जिला के चिखली तालु का में प्रवेश कर उसका अतिक्रमण करती हैं। बाद को बडोदा के गणदेवी तालुका में घुसती और कावेरी का जल लेकर खडी मे गिरती है । अम्बीका डांगसे निकने पश्चात् और व्यारा तालुका मे प्रवेश करने के पूर्व बांसदा राज्य में बहती है। अम्बीका और कुलसनी के उदगम स्थान से लेकर समुद्र समागम पर्यन्त दोनों कुलों पर कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जिसे हम प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर का अवशेष कह सके । हां अम्बीका जल प्लावित कुछ भूभाग पर बांसदा नामक चौलुक्योंका राज्य है । बांसदा की राज्यधानी का नाम भी बांसदा है । बांसदा और वासुदेवमें नाम साम्य पाया जाता है। वासुदेवका रूपान्तर वांसदा हो सकता है । यदि हम यहांपर वासुदेवके रुपान्तर बांसदाके परिवर्तन पर कुछ प्रकाश डाले तो असंगत न होगा क्योंकि पूर्व में प्राक्कथन पृष्ठ ४६ में बांसदा राज्यवंश के परम्परानुसार उनके वासुदेवपुर वालों का वंशधर होनेकी संभावना प्रगट कर चुके हैं। एवं अपनी पुस्तक "लाटचे मराठी ऐतिहासिक लेख" के प्रस्तावना पृष्ट में अपनी पूर्व कथित संभावना को स्थान दे चुके हैं। कथित परिवर्तन नीति के अनुसार वासुदेव का बांसदा निम्न प्रकार से हो सकता है। वासुदेव से वासदेव । वासदेव से वासदे । वासदे से वासदो। और वासदो से वासदा । वासदो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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