Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 280
________________ सम्बवंश संस्थापक विजय और चौथे राजा रामदेव के पर्यत चार राजाओं का सामूहिक समय २६ वर्ष है। और प्रत्येक के लिए औसत. २२ वर्ष कहता है। छठे राजा कर्णदेव और राजा वीरदेव'तृतीय के पर्यन्त सात राजामों का सामुहिक समय १३ है। इसको सात राजामों में बांटने से प्रत्येक का औसत राज्य काल २४ वर्ष प्राप्त होता है। हम अपर बता चुके हैं कि पांचवें राजा वीरसिंह का राज्य काल १२३४. से १२७६ प र्व है। अतः सम्मब है कि किसी अन्य राजा ने मी कुछ अधिक लम्वे काल पर्यंत राज किया हो। इस कारण प्राप्त औसत काल में किसी प्रकार की आपत्ति का समावेश नहीं। - प्रशस्ति कथित वंशावली और तद्भावी राजाओं के समयादि का विवेचम करने पश्चात हम.अन्य बातों के विवेचन में प्रवृत्त होते हैं । प्रशस्ति कथित स्थानों का वर्तमान समय में कुछ परिचय मिलता है या नहीं, वीरदेव के पुत्र कृष्णराज का क्या हुआ और अन्तोगत्वा वसन्त पुर राज्य पर आक्रमण कर उसे लूटने वाला कौन था प्रभृति तीन विषय का विचार करना अत्यन्त आवश्यक हैं। अतएव हम निम्न भाग में इस विषय में यथा साध्य विचार करने का प्रयत्न करते हैं। ..., प्रशस्ति कषित स्थानों का प्रस्थान ग्रादि-विवार करने के पूर्व कथित अमरों की सल्या प्राधिका शान प्राप्त करना असंगत न होगा। प्रशस्ति में सर्व प्रथम मंगलापुरी का सोल है। मंगलपुरी के वर्णन में प्रशस्ति के दो श्लोक लगे हैं। उनसे प्रगट होता है कि दण्डकारण्य में. दूर्ग और कों से वेष्ठित तथा अनेक देवमन्दिरों से युक्त इन्द्रपुरी के समान मादी नामक नगरी थी । अनन्तर तीसरे श्लोक से बात होता है कि विजयसिंह उप चौलुक्य श का प्रथम राजा हुआ! इलके अतिरिक्त मंगलपुरी के सम्बन्ध में यही ज्ञात होता है कि वह दक्षिणा पथ में थी। हमारी समझ में कथित विवर्ण से वास्तव मंगलपुही के अवस्थामा और उसके वर्तमान अस्तित्व का परिचय पाने का प्रयास पंगुके हिमालय अतिक्रमणके समान निरर्थक है। भारतीय पुराणादि के अध्यपन से ज्ञात होता है कि मनु के पुत्र बाड के नाचमुसार निवाचता पर्वत के दक्षिण माग का नाम दण्डकारण्य पड़ा। पुनश्च पुराणों से प्रगट होता है कि मर्मक नदी के दक्षिण का प्रदेश दक्षिणापथ कहलाता था। वाल्मीक रामायण में नर्मदा के दक्षिण वाले भूभाग का अर्थात नासिक के चतुर्दिक बर्ती प्रदेशका नाम गण्डकारण विदित होता है।परन्तु महामात्तसे दण्डकारण्यके बाद बोल-पांच मदि भूभागके अनन्तर दक्षिणपआरंच फाट होता है। ऐसी बसा में प्रशस्ति कथित दक्षिणापय दमरण्य में अवस्थित भगतपुरीका भवस्थान निश्चित करना अत्यन्त दुसाध्य है। परन्तु हमारे सौभाग्य से मंगलपुरी सज्ज के संतापक केसरी विक्रम विजयसिंह देवका शासन पत्र संपत ११४६ विक्रमका मिळगकी। इस में मंगली के स्थान का परिमापक आकाव्य सूत्र उपलब्ध है। अत शासन पत्रा में विणक पुर नामक स्थान का अवस्थान सपद्रिगिरि के उपत्यका में वर्णन किया गया है। संपादित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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