Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 284
________________ चौलुक्य चन्द्रिका] १६४ न था। यद्यपि बांसदा की परंपरा और पारसिओं के इतिहास कथित बांसदा की प्राचीनता के मध्य ३६ वर्ष का अन्तर है तथापि हम बांसदा की परंपरा को प्रमाणिक मानते हैं क्योंकि पारशिओं के इतिहास में वांसदा नगर के निर्माण का समय नहीं वरण अस्तित्व के समय का उल्लेख हैं। क्योंकि हम देखते हैं कि पारसिओं के इतिहास में उनको बांसदा के राजा से आश्रय मिलने का उल्लेख है। बांसदा राज्य की परंपरा और पारसिओं के इतिहास के आधार पर बांसदा राज्य और बांसदा नगर का अस्तित्व को संवत १४४८ के लगभग सिद्ध करने के पश्चात हम प्रशस्ति कथित बांसुदेवपुर और बांसदा के अस्तित्व के अन्तर का विचार करते है । प्रशस्ति के बांसुदेवपुर का निर्माण काल लगभग सबत १३६४ विक्रम है। इस प्रकार दोनों में ५४ वर्ष का अन्तर पड़ता है । यहां पर हम वासदा के परंपरा कथित बंशावली के २० वर्ष औसत के अनुसार प्राप्त बांसदा के अस्तित्व काल १४४८ को पटतर करते हैं। इसको पटतर करने का कारण यह है कि वसन्तपुर-बांसदेवपुर के राजाओं का औसत काल २२ वर्ष ५ महिना है । यही औसत तत्कालीन बातापि कल्यण के चौलुक्य, दक्षिण कोकण (काँट और कोल्हापुर) उत्तर कोकण ( स्थानक ) के शिल्हरा, लाट नंदिपुर के चौलुक्य और पाटण के नोलंकी आदि सभी राजवंशो का पाया जाता है। अतः वंशावली कथित २६ राजाओं के लिए यदि हम केवल २२ वर्ष का ही औसत देवे तो ५७२ वर्ष सामुहिक समय प्राप्त होगा। इस ५७२ वर्ष को बर्तमान बांसदा नरेश के राज्यारोहण समय १६११ में से धटाने पर इ. स. १३३६ तदनुसार संवत १३६६ विक्रम हैं। यह समय प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर के निर्माण कालसे पूर्णरूपेण मेल खाता है। अतः हम निःशंक हो कर कह सकते है कि बांसदा की अर्वाचीनता सबंधी आशंका का पूण रुपेण समाधान हो चुका। यद्यपि बांसदा की अर्वाचीनता संबधी आशंका का समाधान हो चुका तथापि वर्तमान बांसदा नगर में जब पुरातन बांसदा के गौरव का घोतन प्राचीन नगर के ध्वंशावशेषका पूर्ण अभाव होने के कारण बांसदा की अर्वाचीनतात्मक आशंका का परिहार का होना या न होना दोनों बराबर है। हमारे पाठकों को अवगत है कि हम पूर्व में बता चुके है कि वर्तमान बांसदा से लगभग दो मील की दूरी पर नवानगर स्थान में पुरातन नगर का अवशेष है । वहां पर पुरातन नगर के गौरव को द्योतन करने वाले अनेक मन्दिरों और प्रासादो का ध्वंश पाया जाता है। मन्दिरकी निर्माणकी कला और उसमें लगी हुई इंटोंसे स्पष्टतथा प्रकट होता है कि उक्त नगर छ सात सौ वर्ष पूर्व अपने भव्य राज्य महलों और मन्दिरोसे आगन्तुको को चकित करता होगा। नवानगर के चारो तरफ नगर का अवशेष पाया जाता है । इतनाही नहीं नदी को बन्ध द्वारा रोक कर नगर को जल देने के लिये किये गये प्रबन्ध का आज भी नदी में अवशेष पाया जाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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