Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 286
________________ चौलुक्य चन्द्रिका] का नाम वाचक कह सके" इन नदियों के बाद अम्बीका के दक्षिण पार्श्वमें पूर्णा और वाम पार्श्व में कावेरी हैं । न तो पूर्णा ही और न कावेरी ही 'कुलसनी'का रूपान्तर प्राप्त कर सकती है । ऐसी दशामें हमें कहना पड़ेगाकि 'कुलसेनी' इन नदियों मेंसे किसीका भी नामांतर नहीं है। अतः हमें भौगोलिक अन्वेषण को छोड़ साहित्य समुद्र का द्वार खटखटाना होगा। ___पाटण के चौलुक्यों के ऐतिहासिक जैनाचार्य मेरुतुंग अपनी पुस्तक प्रबंध चिंतामणि में लिखते हैं । कुमारपाल अपनी राज सभा में बैठा था। इतने में बहुतसे भिक्षुक उपस्थित हुए और कोकणपति मल्लिकार्जुनका उल्लेख 'राज पितामह' के 'नामसे करके उसका गुणगान प्रारंभ किया । मल्लिकार्जुन का विरुद्ध 'राज पितामह' सुनकर कुमारपाल की भृकुटी तन गई और उसने अपने सैनिकों के प्रति दृष्टिपात किया । उदयन मन्त्रीका पुत्र आम्रभट्टने कुमारपालका अभिप्रायः जान हाथ जोड़ सामने आकर मल्किार्जुन का मान मर्दन करने की आज्ञा मागी । कुमारपाल ने आम्रभट्ट को एक बड़ी सेना के साथ मल्लिकार्जुन पर आक्रमण करने लिये भेजा । वह सेना के साथ पाटण से चलकर कलाबीणी नदी के पास उपस्थित हुआ और बड़े कष्ट के साथ उसे पारकर दूसरे तट पर छावनी डाला । परन्तु मल्लिकार्जुन ने उसे मार भगाया । आम्रभट्ट पुनः सेना लेकर कोकण पर चढ़ा । इसबार उसने कलावेणी नदी में सेतु बनाकर समस्त सेना दूसरे तटपर उतारा और रणक्षेत्र में मल्लिकार्जुन को पराभूत किया । उधृत अवतरण से प्रगट होता हैं कि मेरुतुगास्वार्य की 'कलावीणी' कोकण और लाट की सीमा पर बहने वाली नदी थी । मेरुतुगाचार्य के इस कथानक को बंबई गझेटियर वोल्युम १-पार्व १ के पृष्ट १८५ में निम्न प्रकार से दिया गया है। Another of Kumarpal's recorded victories is over Mallikarjun said to be the king of Kokan, who, we know from published list of the North Konkan Silharas, flourished about A. p. 1160. The author of Prabandhchintamani says this war arose from the Bard of the king Mallikarjun speaking of him before king Kumarpal as Rajpitamah or Grand-father of Kings. Kumarpal annoyed at so arrogant a title looked around. Ambada, one of the sons of Udayan, divining the king's meaning, raised his folded hands to his forehead and expresed his readiness to fight Mallikarjun. The king sent with him an army which marched to the Konkan without haulting. At the crossing of the Kalvini * it was met and defeated by Mallikarjan, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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