Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 281
________________ १६१ लाट वासुदेवपुरखय विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण भाग का नाम दण्डकारण्य पड़ा । पुनश्च पुराणों से प्रगट होता है कि नर्मदा नदी के दक्षिण का प्रदेश दक्षिणापद कहलाता था । वाल्मीकी रामायणसे भी नर्मदा के दक्षिण वाले भूभाग का . अर्थात नासिक के चतुर्दिक वार्ती प्रदेश का नाम दण्डकारण्य विदित होता है । परन्तु महाभारत से दण्डकारण्य के बाद चौलपांड आदि भूभाग के अनन्तर दक्षिणापथ का प्रारंभ प्रगट होता है ! ऐसी दशा में प्रशस्ति 'कथित दक्षिणापथ दण्डकारण्य में अवस्थित मंगलपुरी का अवस्थान निश्चित करना अत्यन्त दुसाध्य है । परन्तु हमारे सौभाग्य से मंगलपुरी राज्य संस्थापक केशरी विक्रम विजयसिंह देव का शासन पत्र संवत १९४१ विक्रम का मिल गया हैं,। इस में मंगलपुरी के अवस्थान का परिज्ञापक आकट्य सूत्र उपलब्ध हैं। में विजयपुर नामक स्थान का अवस्थान संह्याद्रिगिरी के उपत्यका में वर्णन किया गया है। संह्याद्रि पर्वत श्रेणी का प्रारंभ तापी नदी के दक्षिण से लेकर मैसूर राज्य पर्यन्त चला गया है। यदि विजयपुर का विशेष परिजय तापी नदी के तट पर न बताया गया होता तो इस शासन पत्र से भी मंगलपुरी के अवस्थान संबंध में कुछ भी सहायता न मिलती । मंगलपुरी का अवस्थान उक्त शासन पत्र के अनुसार. उसके विवेचन में पूर्ण रूपेण विचार करने के पश्चात बडोदा राज्य के सोनगढ़ · तालुक में तापी नदी से लगभग २५-३० मील दक्षिण और पूरणा नदी के उदगम स्थान से लगभग १४-१५ मील उत्तर में निश्चित कर चुके हैं और प्रशस्ति तथा शासन पत्र कथित मंगलपुरी को वर्तमान मंगलदेव नामक स्थान सिद्ध कर चुके हैं। अतः यहां पर पुनः विवेचन क्षेत्र में प्रवृत्त होना एवं युक्तिओं तथा प्रमाणों का अवतरण देना अनावश्यक मान अपने पाठकों का ध्यान उक्त शासन पत्र के विवेचन प्रति अकृष्ट करते हैं । मंगलपुरीके अनन्तर प्रशस्ति मे दूसरे स्थान का नाम विजयपुर है । विजयपुर के संबंध प्रगट होता है कि विजयसिंह ने में बुछ भी विवर्ण नहीं पाया जाता । श्लोक चार के पूर्वार्थ से अपने राज्य में विजयपुर नामक नगर बसाया था । हम पूर्व में विजयसिंह के शासन पत्र का उल्लेख करके बता चुके हैं कि मंगलपुरी का अस्थान निर्णायक विजयपुर है । अतः विजय पुर का अवस्थान ज्ञापक अन्य प्रमाण प्राप्त करने के स्थान में उक्त शासन पत्र के विवेचन प्रति पाठको का ध्यान आकृष्ट करते हैं । प्रशस्ति में तीसरे स्थान का नाम वसन्तपुर है। इसका परिचय हमें प्रशस्ति के श्लोक ६ से मिलता है । उक्त श्लोक से प्रगट होता है कि रामदेव ने वसन्तपुर नामक सुन्दर नगर बसाया था ! पुनः प्रशस्ति के श्लोक ६ के उत्तारार्थ से प्रगट होता है कि वीरसिंह ने शत्रुओं का नाश कर बसन्तपुर को अपनी राज्यधानी बनाया। इसके अतिरिक्त प्रशस्ति में वसन्तपुर का कुछ भी परि चय नहीं । मिलता हां वीरसिंह के बिक्रम संवत १२३५ के शासन पत्र में बसंतपुर का ज्ञापक चिन्ह है । उक्त शासन पत्र के विवेचन में हम सिद्ध कर चुके हैं कि वसन्तपुर पूर्ण नदी के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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