Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 279
________________ परकरने से प्रयट । पर बैठने वाले की संख्या १३ है जयसिंह का राजा के पिता देव और वो श्री शावली के पलोचन से ट सनापुर राज्य से मी. वे राजा वीरदेव के इसके भाई के हाथ से हुई थी। अतः संस्था १३. है । इसका कारण यह है कि छठे पुत्रों ने राज्य किया और छोटे पुत्र धत्रलदेव से द्वितीय यहूदी पर वहीं बैठे। योंकि राहिलीय की युद्ध में किसी राजाओं की संख्या १४ होनी चाहिए उसके तीनों जरा संतु का आगे विस्तार हुआ ।, मृत्यु पश्चात् उ px धन प्रशस्ति लिखे जाने की तिथि विक्रम सम्बत् १४४४ है । इधर कृष्णानंद की शिल पुस्तिका समय विक्रम संवत् १४३८ है । उक्त प्रशस्ति में भी बसन्तपुर की रानी शक्कर मन्दिर बनाने का स्पष्ट उल्लेख है। प्रस्तुत प्रशस्ति में अंतिम राजा वीरदब के दादा "और दादी महाराज रामदेव और महारानी सीतादेव की भूरि २ प्रशंसा दृष्टिगोचर होती है। इससे प्रगट होता है कि प्रशस्तिकार को मन्दिर बनाने के लिये महाराज रामदेव की रानी सीतादेवी से था और ये दोनों मंदिर की प्रोक्ति किसे जाते समय खपुर सिंहासन पर तीमध्ये !इवर सस्ति में संमदेव को अपनी मृत्यु के पूर्व ही पुषों को जागीर देने और को मद्दी पर बैठाने का उल्लेख है । एवं वीरवेश को गद्दी पर बैठाने के मृत्यु का होगा गट होता है। अतः इससे गट होता है किया तो रामध के पूर्व होने वाले युद्ध में मह लड़ता हुआ घोर रूप से काला था। सबको लक्षर हम कह सकते हैं कि शक्ति जाने और मीरदेव का राज्यासमय दोनों एक हैं। और वह विक्रम संवत् १४४४ है । मसति में बाति की तिथि के अतिरिक्त किसी भी सजा के राजादन नहीं दिया गया है। परन्तु राज्य संस्थापक विजय का शासन पत्र में वि १९४६- आत है। सः राज्य संस्थापना और प्रशस्ति की तिथि में ३०५ वर्षका यदि हम कान्तिम राजा बीरदेव को छोड़ देवें, क्योंकि धर्मान्ति उसके राज्यारोहण राजाओं की संख्या केवल १२ ही रह जाती है। अतः इसे इनका ३०५ वर्षको १२ में परन्तु १२ राजाओं में उनका महिम-बराबर जसत मानते पर में विभक करने से प्रत्येक शासन करने वाले राजा के लिए है । इस राजा चीरदेव राजा कलव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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