Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 277
________________ [लाट वासुदेवपुर संस्ड रों पुत्र हुए । आठवें श्लोक से-प्रगट होता है कि रामदेव ने राजा होने के पश्चात् वसन्तपुर नामक नगर बसाया। नवर्षा श्लोक हात करता है कि रामदेव के बाद उसके भाई लक्ष्मणः का, पुत्र बड़ा ही प्रचंड योद्धा था। उसने शत्रुओं का नाश कर वसन्तपुर में निवास किया। दशवें श्लोक में अमिगुण्ठन किया गया है कि वीरदेव को अपनी रानी विमला देवी के गर्भ से मूलदेव और कृष्णदेव नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए । श्लोक ११ और १२ कृष्णदेव की दुष्टता प्रभृत्ति और राज्यलिप्सा आदि का वर्णन करने पश्चात् उसे बन्धुघात द्वारा अपने पिता को दुःख देने वाला बताते हैं । १३ और १४ श्लोकों से प्रगट होता है कि पुत्र शोकसे संतप्त वीरदेव ने मंत्रियों के मना करने मर मी कृष्णदेव को राज्य से मिकाल बाहर किया और मूलदे के पुत्र कर्णदेव को गद्दी पर बैठा अपने आप विरक्त हो जंगल में चला गया। लोक १५.१६ और १७ से ज्ञात होता है कि कर्णदेव को अपनी राणी बकुलादेवी के गर्भ से सिझे. श्वर, विशालदेव और धवलदेव नामक तीन पुत्र हुए । जो क्रमशः उसके बाद वसन्तपुर की गद्दी पर बैठे । श्लोक १८ का प्रथमार्ध द्योतन करता है कि धवन के बाद उसका पुत्र बासुदेव राजा हुआ और उत्तरार्ध बताता है कि बासुदेव का पुत्र मीम था । १६ में श्लोक से प्रगट होता है कि भीम ने कुलसनी और अम्बिका नदियों के मध्य वेणुतन्ज में विष्णु विप्रहमय वासुदेवपुर नामक नगर वसाया । २० वां श्लोक, बताता है कि मीम का पुत्र वीर उपनाम राम हुमा। जो चौलुक्य वंश का चन्द्र था। ३१ वां श्लोक ज्ञापन करता है कि वीरदेव बलमें रामके धर्म में युधिष्ठिर के समान, शत्रुओं के लिए यमराज के और आश्रितों के लिए शंकर के समान था । २२ वा श्लोक उसकी राणी सीता को इन्द्र की पत्नी शची, शिवकी पार्वती और विष्णु की रमा के समान और परंमपतिव्रता बताता है । २३-२४ श्लोक बताते हैं कि वीरदेव. को सीता के गर्भ से बसन्तदेव, महादेव, कृष्णदेव और कीर्तिराज नामक चार पुत्र हुए। २५-२६ से प्रगट होता है कि रामदेव इन पुत्रों को पा, प्रजा से पूजित और ब्राह्मणों से आद्रित हो संसार में ही स्वर्ग सुख का अनुभव करता था । २७ से ज्ञात होता है कि अचानक संपलव उपस्थित हुआ जिसमें वसन्तदेव मारा गया, वसन्तपुर लुटा गया और समस्त राज्य में अंधकार छा गया । २८-२९ से प्रगट होता है कि वसन्तदेव के मारे जाने और चौलुक्य राज्य के लूटे जाने से वसन्तपुर की प्रजा अत्यन्त दुखी हुई थी । एवं जब शत्रु का आतंक मिट गया तो वीरदेव वासुदेव पुर में चला गया। श्लोक ३०-३१ से प्रगट होता है कि वीरदेव वासुदेवपुर में पाने पश्चात् स्वर्गीव ज्येष्ट पुत्र बसन्तदेवके पुत्र वीरदेव को गद्दी पर बैठा, अन्य पुत्रों को एक २ विषय देकर स्वर्गवासी हुआ था । अतः वीरदेव के पुत्र कृष्ण को कार्मणेय, महादेव को मधुपुर और कीर्तिराज को पावत्य नामक विषय का मिलना प्रगट होता है । ३२ वां श्लोक प्रगट करता है कि वीरदेवको वारा वीरदेव से सम्म प्राप्त करने परचात मनापालन में सी समय उसके मनोरंजनार्य प्रशस्ति का निर्माण किया गया। श्लोक ३३ और ३४. प्राप्तिकार का नाम कृष्णानन्द और इसकी तिथि श्रावण शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत १४४ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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