Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 276
________________ ३५६ विवेचन प्रस्तुत प्रशस्ति वसन्तामृत नामक ग्रंथ में लगी हैं। वसन्तामृत ग्रन्थ के कर्ता सकरा 'नंद भारती स्वामी के शिष्य कृष्णाना स्वामी हैं। वसंतामृत ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद है । इस प्रथ के लिखे जाने की तिथि वैशाख कृष्ण शिवरात्री विक्रम संवत् १४४४ है। और स्थान तापी नदी का वालाक क्षेत्रवर्ती शंकर महादेव मंदिर है । एवं प्रशस्ति की तिथि श्रावण शुक्ल द्वादशी संवत् १४४४ है ।. I बसन्तामृत ग्रंथ के उपलब्ध प्रति की तिथि मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी संवत १७६३ विक्रम है। इसका आकार लगभग एक बालिश्त चौड़ा और डेढ़ बालिस्त लम्बा हैं । इसकी पृष्ठ संख्या ३११ है । प्रत्येक पृष्ठ में चारों तरफ दो अंगुल के करीब हांसिया छोड़ कर तीन लाईन बनाई गयी हैं। इन तीनों लाइनों में से एक पीली, दूसरी लाल और तीसरी नीली है। प्रथम २१ पृष्ठ तापी नदी के महात्म्य और प्रकाशा क्षेत्र की स्तुति में लगे हैं। दूसरे सात पृष्ठ गुरु की महिमा वर्णन करते हैं। पचात् तीन पृष्ठ शंकरानंद भारती के गुणगान और अलौकिक योग सिद्धियों के चित्रण में लगे हैं। इसी प्रकार अन्त के तीन प्रष्ठों में वासन्तपुर प्रशस्ति दो पृष्ठ में बिजयदेव का शासन, दो प्रष्ठ में वीरदेव का शासन, और दो प्रष्ठ में कर्णदेव के शासन को अभिगु ठन में लगे हैं। इस प्रकार पुस्तक के ४० प्रष्ठ प्रस्तावना और प्रशस्ति, आदि में लगे हैं। पुस्तक की लिपि देवनागरी है। तापी, प्रकाशा, गुरुमहिमा और शंकरानंद भारती के चरित्र की भाषा संस्कृत है। उसी प्रकार राज प्रशस्ति की भाषा संस्कृत है। पुस्तक की भाषा यद्यपि हिन्दी है परन्तु उसमें गुजराती और यत्रतत्र मराठी भाषा के शब्द पाये जाते हैं। पुस्तक के आदि और अन्त में लकड़ी की पट्टियां लगाई गई हैं। जो चंदन आदि से परिपूर्ण हैं। पुस्तक स्वरवा के वेस्टन में बंधी हैं। वेस्टन की दशा भी पट्टिये के समान है। इससे प्रगट होता है कि पुस्तक की पूजा वंश परम्परा से होती था रही है। पुस्तक से हमारा अधिक सम्बन्ध न होने से हम अब निम्न भाग में प्रशस्ति के विवेचन में प्रवृत्त होते हैं । प्रस्तुत प्रशस्ति के श्लोकों की संख्या ३४ है। प्रथम हो श्लोकों में मंगलपुरी का वर्णन है । तीसरे श्लोक में जयसिंह केपुत्र विजयसिंह का मंगलपुरी का पथम राजा होना और ategoोक के प्रथम चरण में उसका अपने राज्य में विजयपुर नामक ग्राम बसाने का उल्लेख है। चौथे श्लोक के दूसरे चरण में विजयसिंह के बाद धवल का राजा होना वर्णन किया गया है। पांचवें और छठे लोकों से धवल को अपनी रानी लीलादेवी के गर्भ से पांडों के समान बसन्त, कृष्ण, महादेव वाचिक और भीम नामक पांच पुत्रोंका होना प्रगट होता है । एवं इससे यह मी. प्रगट होता है कि मीस परम पितृ भक्त था सातवां लोक बताता है कि भगल के पचास वसंत राजा हुआ और उसको अपनी रानी वाग्देवी के गर्भसे राम और लक्ष्मण नामक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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