Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ [ लाट वासुदेवपुर खण्ड हम उपर प्रकट कर चुके हैं कि शासन पत्रकी वंशावली में केवल चार नाम हैं। उनमें शासन कर्ता के प्रपितामह जयसिंहको वातापि नाथ कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि वह वातपिका राजा था। परन्तु उसका पुत्र सोमेश्वर कहांका राजा था यह नहीं प्रकट होता। किन्तु उसकी विरुदावली अपने पिताके समानहीं होनेसे उसकामी स्वतंत्र राजा होना प्रकट होता है । जयसिंह द्वितीय अर्थात शासन कताके पिताकी विरुदावली के संबंधमे हम कुछ विचार उपर प्रकट कर चुके हैं। अतः यहां पर इतनाही कहना पर्याप्त होगा कि उसके अधिकारमें वनवासी और सान्तलवाडी आदि प्रदेश थे। वह सांतलवाडी आदि प्रदेशोंका स्वामी अर्थात राजा और वनवासीका युवराज था । जब जयसिंह अधिकार :चित हुआ तो काल क्षेपणार्थ जंगलमें चला गया। उसके वनवासके समयमें ही उसके पुत्र केसरी विक्रमने नवीन अधिकार प्राप्तकर मंगलपुरीको अपनी राज्यधानी बनायी। . अतः अब विचारणा है कि वातापि के चौलुक्य राज्यसिंहासनका भोक्ता जयसिंह नामक कोई राजा हुआ है या नहीं। यदि हुआ है तो उसका समय क्या था । उसके पुत्र और पौत्रका नाम अहवमल्ल और जयसिंह था या नहीं। यदि था तो अहवमल्लका समय क्या था और जयसिंहकी विरुदावली क्या थी । वह वनवासीका युवराज कहलाता था या नहीं। नोन्लमवाडी आदि प्रदेशोंके साथ उसका क्या संबंध था और अन्ततोगत्वा वनवासीका अधिकार उसके हाथसे कब और क्योंकर छिन गया। ___ इन प्रश्नोंका समाधान करनेके लिये हमे वातापि राज्यवंशके इतिहासका अवलोकन करना होगा । वातापि के चौलुक्य वंशकी राज्यधानी वातापि आने के पूर्व ऐजन्त नामक स्थान - जिसे संप्रति एजन्टा कहेते है में थी। ऐजन्तपुरी में चौलुक्य वंशकी संस्थापना करनेवाला जयसिंह हैं। उसके पूर्व चौलुक्योंकी राजधानी चुलुकगिरि नामक स्थानमें थी और चुलुकगिरि के संयोगसे गजवंशका पूर्व नाम सोम वंश बदल कर चौलुक्य प्रचलित हुआ। चौलुकगिरि राज्य प्राप्त करनेवाला विष्णुवर्धन विजयादित्य है। विजयादित्य के पश्चात् सोलह राजाओंने चौलुक्यगिरि राज्य सिंहासन का भोग किया । अनन्तर उनके हाथसे राज छिन गया। परन्तु अन्तिम राजा के पुत्र जयसिंहने पुनः अपने बाहुबलसे खोये हुए राज्यका उद्धार कर ऐजन्तपुरी को अपनी राज्यधानी बनायी। जयसिंहके बाद उसका पुत्र रणराग हुआ। उसने भी पैजन्तपुरीमें रहकर पैतृक राज्यका भोग किया। उसके पश्चात उसका पुत्र पुलकेशी हुआ । पुलकेशी वास्तवमें अपने वंशका परं प्रख्यात राजा हुआ । इसने सर्व प्रथम वातापि के कदम्बोंका उत्पाटन कर पातापि पुरीको अपनी राज्यधानी बनायी। पुलकेशीने प्रायः समस्त भारत वर्षको विजय कर एक छत्र बन अश्वमेध यज्ञ किया। पुलकेशीके पश्चात् उसके कीर्तिवर्मा और मंगलीश्वर नामक दोनों पुत्रोंने क्रमशः उसके राज्यका उपभोग किया । मंगलीशने बातापिपुरीके प्रसिद्ध गुफाका निर्माणकर उसमें अपने कुल देव बाराहकी प्रतिमा स्थापित कर अपना नाम अचल बनाया । मंगलीशके पश्चात् उसका भतीजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296