Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 237
________________ ११७ [ लाट नन्दिपुर खण्ड प्राप्त कर शके ती समस्त उलझी हुई गुत्थी अपने आप उलझ जायेगी । और हम अपने इस भयंकर सन्देह समुद्रसे त्राण पा सकेंगे जयसिंह बडे मझले भाई विक्रमादित्य के राज्य कवि काश्मीरी पण्डित विल्हण के नामसे हमारे पाठक परिचित है । कवि विल्हण अपनी पुस्तक विक्रमाकदेव चरित्र में लिखता है। "करहाटक के शिल्ल राजा की पुत्री चंद्रलेखा से विवाह कर विक्रमादित्य अपनी राज्यधानी में आकर सुखभोग में व्यक्त हुआ । इस प्रकार सुखभोगे करते उसको बहुत दिन बीत गये । एक दिवस उसके विश्वास पात्र गुप्तचरन आकर सुचना दी कि महाराज आपके छोटे भाई आपका राज्य छीनने के विचारसे प्रजा पीडन द्वारा वहुतसा धन एकत्रित कर द्रविड के राजा से मैत्री स्थापन करने के उद्योग में लगा है । एवं अपनी सेनाको विद्रोही बनाने का प्रयत्न कर रहा 'वहुत बडी सेना एकत्रित कर लिये है तथा जंगलो जातियों को अपना सहायक बना आप पर आक्रमण करने के उद्योग में लगा है। तथा इस सूचनाको प कर विक्रमादित्यने उसका तथ्या तथ्य जानने के विचार से अपने राजदूत को जयसिंहके पास भेजा। जिसने लौटकर कथित वातों को पूर्णतः सत्य प्रकट किया । I इतने परभी अपने छोटे भाई पर शस्त्र उठाना उचित न मान पुनश्च अपने दूतको जयसिंहको समझाने बुझाने के लिये भेजा । परन्तु जयसिंह ने किसीकी एक न सुनी और अपने सामन्तों और सेनापतियों के साथ बहुत बडी सेना लेकर विक्रमादित्यके राज्य पर आक्रमण किया आसपास के गामों को लुटने और जलाने लगा। विरोध करने वालों को बन्दी बनाया, कृष्णा नदि के प. स तक चला आया । परन्तु विक्रमादित्य इस आक्रमणका समाचार पाकर भी कुचा दिनो तक शान्त बैठा रहा : अन्तमे विक्रयादित्य अपनी सेना के साथ आगे बड़ा । दोनो सेनाओं में युद्ध हुआ जिसमे जहसिंहने अपनी हस्ति सेनाको आगे कर आक्रमण किया । और विक्रमादित्य के गजअश्व और पदाति सेनाकों पीछे हठाया । किन्तु विक्रमादित्य अपनी सेना को उत्साहित करता हुआ आगे बढा और जयसिंह की सेना को छिन्न भिन्न किया । जयसिंह पराभृत हो कर अपनी सेनाको छोड़ भाग गया । अन्तमें विक्रमादित्यको जयसिंह की सेना के असंख्य हाथी-घोडे और धन रत्न के साथ स्त्रियां हाथ लगी। विल्हण पण्डितके कथनपर "विक्रमादित्य अपने छोटे भाई पर अस्त्र उठाना नहीं चाहता था" हमे रोकने पर भी वरवश हंशी आ जाती है। क्योंकि बिल्हण अपने उक्त कथनसे विक्रमादित्य के चरित्र में भातृ वात्सल्यका चित्र चित्रण करना चाहता है । परन्तु हमारे पाठकों को विक्रमादित्य के भ्रातृवात्सल्य का ज्ञान भलि भांति प्राप्त हो चुका है। अतः हमे आशा है कि विक्रमादित्य के भातृवात्सल्य को वे अवश्य समझते होंगे। तथापि हम यहां पर उसकी नमूना पेश करते हैं । हमारे पाठकों को ज्ञात है कि बिल्हण ने सोमेश्वर और विक्रमके विग्रह में भी सोमेश्वरका चरित्र भी ठीक जयसिंह के चरित्र समान चित्रित किया है और वहां भी विक्रमको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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