Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 262
________________ चौलुक्य चन्द्रिका इनको विहारिक विषयका कर्पूराग्राम समान भाग रुपसे दिया गया है। प्रदत्त ग्राम और प्रतिग्राहिता ब्राह्मणों के निवास का वर्तमान समय में परिचय मिलता है अथवा नहीं | हमारी समझमें शासन पत्र कथित विहारीका वर्तमान व्यारा है। क्योंकि बिहारी at far और farारा का व्यारा बन सकता है । विहारिका को व्यारा मान लेने के बाद हमें उसके आसपास में ही प्रदन्त कर्पर ग्रामका परिचय प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करना होगा । वर्तमान व्यारा नगर से लगभग सात आठ मील की दूरी पर दक्षिण दिशा में कपुरा मरा है । शासन पत्र कथित कपुरा के पूर्व में सिमलद, दक्षिण में शाकंभरी नदी, पश्चित में वालार्धन और उत्तर में विशालपुर है । वर्तमान कपुरा के पूर्व में चिखलद, दक्षिण में झाखरी, पश्चिम में वालोड, और उत्तर में खुशालपुर है । हमारी समझमें शासन पत्र कथित शाकंबरी नदी वर्तमान झाखरी है। क्योंकि शाकंभरीसे अनायास ही शाखभरी और शाखरी से भाखरी बन सकता है । शासन पत्र के बालाधनका अनायास ही बालोढन और बालोदन का वालोड हो सकता है। अतः वर्तमान वालोड़ही बालाधन का रुपान्तर है। उसी प्रकार विशालपुर का खुशालपुर भी बन सकता है। हां शासन पत्र कथित सिमलद का वर्तमान परिचय प्राप्त करने का हमारे पास कुछभी साधन नहीं है । 1 १४२ ब्राह्मणों के निवास वाले प्रामों के सम्बन्ध में हमारा विचार है कि शासन पत्र का बहुधान लाप्ती तट का वोढाण है। देवसारिका सम्भवतः बिल्लीमोरा के पास वाले देवसर या देसरा में से कोई एक ग्राम हो सकता है । परंतु हमारी प्रवृत्ति शासन पत्र के देवसारिका को वर्तमान देवसर ही मानने को अधिक होती है । अन्ततोगत्वा शासन पत्र कथित कच्छावली ग्राम गणदेवी और अमलसाड के मध्यवर्ती छोली नामक ग्राम है । इस ग्राम का उल्लेख पाटन पति कर्णदेव के विक्रम संवत ११२१ वाले लेख में है। उक्त लेख का विवेचन चौलुक्य चन्द्रिका पाटन खण्ड में हम विशेष रूपसे कह चुके हैं 1 शासन पत्र के बारम्बार पर्यालोचन से भी वीर सिंह के पुत्र और शासन कर्ता करदेव के पिता का नाम ज्ञात नहीं हुआ। संभव है कि लेखक के हस्त दोष से उक्त नाम छूट गया हो । यदि वास्तव में उसका नाम जान बूझकर छोड़ दिया गया है तो हम कह सकते हैं कि वंशावली में केवल राज्य करने वालों के ही नाम दिये गये हैं । अन्यान्य शासन पत्रों के अध्ययन से भी यह सिद्ध होता है कि शासन पत्रोंकी वंशावली में केवल शासन करने वालों ही का नाम दिया जाता है । अतः कर्णदेव के पिता, शासन पत्र कथित वंशावली में, के नामका अभाव शासन पत्र का दोष नहीं है । इस लेख से प्रगट होता है कि कर्ण के पिता के पार्वण श्राद्ध समय शासन पत्र लिखा गया था | अतः कर्ण के पिता की मृत्यु इस लेख की तिथि से एक वर्ष पूर्व होनी चाहिये। क्यों कि पार्वण श्राद्ध मृत्यु के एक वर्ष पश्चात् किया जाता है। अतः कर्ण के राज्यरोहण का समय मी इस प्रकार हमें विक्रम संवत् १२७६ प्राप्त हो जाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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