Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 247
________________ [बाँट मासुमपुर संग जिसक सम्बन्ध में प्रस्तुत सहमत ह ... क जय सह अपने परि A जगलम शाश्रय लिया संकेत करता वारके साथ सम्भवतः उत्तर कोकणे और लाट देश के प्रति गैमनीन्मुख हुआ था । एवं उसके इन प्रदेशों के प्रति गमनोन्मुख होनेकी संभावना विशेष है। इस संभावना का समर्थन जयसिंह के सक १००३-४ वाले द्वितीय लेखके पर्यालोचनसे सतया हो जाता है । तथापि इस प्रश्नका समाभात करने के लिये हमे दक्षिण भारतके तत्कालीन परिवर्तन और विशेष करके इतिहास और एतिहासिक स्थानों तथा भौगोलिक अग्थानका आश्रय लेना होगा । अतः हम सर्व प्रथम भौगोलिक अवस्थानका विचार करते हैं। क्योंकि इसके ज्ञान प्राप्त करने पश्चात प्रथम तथा उत्तर भावी प्रम के विवेचनको समझने में सहायता मिलेगी। जयसिंहकी राज्यधानी, वनवासी वाशश सहलके पानसर्गत क्लीपुर नामक नगरमें थी और बनवासीमें भी उसके रहने का परिचय मिलता है। वनवासीका भौगोलिक अवस्थान इम्पीरियल ग्रेजेटीअर के मान चित्रमें १४-२५ और ७५६७६ के मध्य में है, गोकर्णका अवस्थान १५-१६ और ७४-७५ के मध्य वनवासी से पश्चिनोत्तर में लगभग १५० मील है। वादामी और केशुक्ल नाम पहलकाल का अवस्थान १६-१७ और ५६-६६ के मध्य वनवासी से कुछ पूर्वोत्तर में एटा इमा लगभग २०० मील और ठीक पूर्वोत्तर कोने में ३३५-४० मील है। कोल्हापुर'१६-२७ और ७३-७४ के मध्य और गोआ.लगभग २०० मील वनवासी पश्चिमसे कुछ इंटा हुआ उतरने लगभग ३७५-८० मील तथा वातापि से पूर्व उतर कोने मे लगभग २५० मील है । करहाट १७-१८ और ७३-८४ के मध्य बादामी से लगभग ३५० मील उत्तर कुछ पूर्वको हटा हुआ है। ... .. उधृत भौगोलिक अवस्थान से वनवासी आदि प्रदेशों का भव स्थान हमें विदित हो गया। अब यदि हम विक्रम और जयसिंह के शत्रुनों का ज्ञान प्राप्त कर सके तो जयसिंह के पराभव का और वनवासी से भाकर जंगलो में भागने का कारण जान सकते हैं। हमारे पाठकों को शांत है कि गोकर्ण का कदम वेशी जयकर्ण विक्रमादित्य का जामात्र और परम मित्र था। एवं करी का शिलाहार राजवंश की कन्या का विवाह विक्रमके साथ हुआ था। पुनश्च कोल्हापूर और कर दोनों राजवंश अभिन्न थे। दूसरे तरफ जयसिंहका पर शत्रु और प्रतिद्वंदी 'जयकेशी थी। और जवसिंह ने अपने लाट पाहल और कोकण विजय के समय कोपर्दि दीप ( थाना के शिल्हार राजा को गर्दैदी से उतार शिव्दारों को अपना शत्रु बना चुका था। विहण के कथनानुसार विक्रम जयसिंह के कृष्णा तटपर भाकर आक्रमण करने परमी सुपचाप बैठी। जब वह कृष्णा के पगे बढ़ो तो वह अपनी सेना के साथ प्राकर युद्धमें स्ट से या किसीको य दाव पचका कुछमा ज्ञान होगा तो वे तुरतही रहने का कारण यह है कि वह जयसिहको अपने PMONTHSHAR रूपसभपने सम्बन्धिीका पावसभाकर उसका S मत जावग। उस देना चाहता था। अ जापभोग बढ़ानना चाहता था। सम्बन्धअपनारायवाना बनधासाविच्छ करा सपा समाआमन्य नहानहापार सनाचा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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