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[ लाट नक्सारिका खण्ड महान भवरमे डाल देता है। कितने विधान लेखकी अयथार्थताकी शंकासे लेलकी शाक्ली गत दोषरापरिहर्य कीर्सिकम्माके पुलशी, जयसिंह, बुद्धवम्मी और विष्णु वढन नामक चार पुत्रोंका होना प्रकट करते है। एवं प्रकट करते है कि पुलकेशी ने जिस प्रकार विष्णु वर्धनको वेंगी मंडल का सामन्त बनाया था उसी प्रकार जयसिंह को गोप राष्ट्र का और बुद्धवर्मा को उत्तर कोकण का बनाया था।
परन्तु हमारी समझ में इस प्रकार वंशावली गत दोष परिहार करने से त्राण प्राप्त नही होगा । क्योंकि सैकड़ों की संख्या में प्राप्त चौलुक्योंके शासन पत्र इसका विरोध करते है। चाहे भाप पश्चिम या पूर्व चौलुक्य वंश के शासन पत्रों का लेवें नतो आपको कीर्तिवर्मा का विरुद सत्याश्रय मिलेगा और न उसके अश्वमेधावमृत्थ स्नान कृत पवित्र भूत शरीरका परिचय मिलेगा। अन्यान्य लेखों को पटतर करने पर भी केवल कीर्तिवमा के पुत्र पुलकेशी द्वितीय के विविध शासन हमारे कथन का समर्थन करेगे। हम यहां पर अपने समर्थन मे वेगम वाजर हैदराबाद दक्षिण से प्राप्त पुलकेशी द्वितीय के शासन पत्र का अवतरण करते है " अश्वमेधावभृत्य स्नानपवित्रीकृत मत्रस्य सत्याश्रय श्री पुलकेशी बल्लभ महाराजरय पौत्रः पराक्रमाक्रान्त वनवा स्यादि पर नृपति मंडल प्रतिवद्ध विशुद्ध कीतिषताकस्य कीर्तिवम्म बल्लभ महाराजस्य तनयो नय बिमयादि गुण विभूत्याश्रय श्री सत्याश्रय पृथिवी बल्लभ महाराज समर शत संघट संसक्त पर नृपति पराजयोपलब्ध परमेश्वरापर नामधेय"। उधृत वाक्य हमारी धारणाका समर्थन पूर्णतः करने के साथही प्रस्तुतलेख के कथन 'पुलकेशी चित्रकठ नामक अश्व पर आरुढ हो" का मूलोच्छेद
यद्यपि फुलकेशीके चित्रकंठ घोडे पर चढने और कीर्तिवमी के अश्वमेधावभृत्य स्नान कृत पवित्र शरीर होने तथा सत्याश्रय विरुद का खडण पर्याप्त रुपेण उपरोक्त वाक्य से होता है तथापि हम यहां पर अपने समर्थन मे पुलकेशी द्वितीय के पुत्र विक्रमादित्य प्रथमके वेगम वजार हैदराबाद दक्षिणसे प्राप्त शासन पत्रका निम्न वाक्य "अश्वमेधावभृत्य स्नान पवित्री कृत गात्रस्य श्री पुलकेशी बल्लभ महाराजस्व प्रपौत्रः पराक्रमाक्रान्त बनवास्यादि पर नृपति मंडल प्रणिबद्ध विशुद्ध कीर्ति पताकस्य श्री कीर्तिवम बल्लभ महाराजस्य पौत्रः समर संसक्त सकलात्तरापथेश्वर श्री हर्षवर्धन पराजयोपलब्ध परमेश्वरपरनामधेयस्य सत्याश्रय श्री पृथिवी बल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वरस्य प्रिय तनयः चित्रकमख्य प्रवर तुरंग मेनैकेनैव प्रेरितोऽनेक समर मुखेषु रिघुनृपति रुधिरजल्लास्वादन .........विक्रमादित्यः" का अवतरण करते है। भवतरित वाय हमारी पूर्व कथित धारणाका । समर्थन करनेके सायही चित्रकंठ घोडे का सम्बन्ध विक्रमादित्य प्रथम के साथ जोडता है।
हमारी समझमे आलोच्य लेखके कथन “कीर्तिवमा अश्वमेधावभृत्य स्नानकृत पवित्र शरीर तथा पुलकेशी द्वितीय चित्रकंठ घोडे का स्वामी था" की अयथार्थता पर्याप्त रूपेण सिद्ध हो चुकी । अतः हम इस सम्बन्धमे और प्रमाण आदिका अवतरण न कर वंशावलीकी अयथार्थता प्रदर्शन करने में प्रवृत्त होते है। पूर्वोकृत वाक्य व्यसे विक्रमादित्य पर्यन्त चार नाम प्राप्त होते है। प्राप्त चार
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