Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 162
________________ चौलुक्य चंद्रिका वंशावली का विशुद्ध स्वरूप करने पश्चात हम प्रशस्ति कथित विवरण के विवेचन में प्रवृत्त होते हैं प्रशस्ति के श्लोक ८ और से प्रकट होता है कि वारपराजने अपनी नीति निपुणता तथा सुप्रबंध से लाट देश प्राप्त किया और वहां जाकर शत्रुओंका नाश कर प्रजाका मनोरंजन करता हुआ कोषकी वृद्धि किया। इससे स्पष्ट है कि वारपराज ने लाट देश अपने भुजबल प्रतापसे नहीं प्राप्त किया था और न वह अपनी इच्छासे लाट देशमें आया था वरन वह किसीके आधीन और किसी देश विशेष का शासक था। उसके स्वामी ने उसके सुप्रबंध आदि से प्रसन्न हो उसे लाट देश का शासन भार दिया। जहां जाकर वारपने अपने स्वामी के शत्रुओं का नाश किया और सुन्दर शासन द्वारा लाट देशकी प्रजाको प्रसन्न करता हुआ राज्य कोषकी वृद्धि संपादन किया। अतः विचारना है कि वारपका स्वामी कौन था जिसने उसको लाट देशका सामन्त शासक बनाया और वारप ने अपने स्वामी के किस शत्रुका नाश किया । कीर्तिराज के कथित शासन पत्र शक ६४२ वाले के विवेचन में वारपदेव क स्वामी और सामन्त बनाने वालेका नामादि प्रकट कर चुके हैं एवं यह भी बता चुके हैं कि लाट देशका शत्रु कौन था अतः यहां पर उसका पुनः विचार करना अनावश्यक मान आगे बढ़ते हैं। और सर्व प्रथम प्रशस्ति कारकी चाटुकता संबंध में कुछ विचार करते है। प्रशस्तिकारने वारप राज को लाट देशका राज्य देनेवालेका नाम छिपाना जिस प्रकार उचित प्रतीत हुआ उसी प्रकार वारप को परास्त करनेवालेका भूल जाना युक्ति संगत प्रतीत हुआ। परन्तु प्रशस्तिकार हमारी समझमें अपने इन दोनों प्रयत्नों में विफलमनोरथ हुआ है। क्योंकि उसने वारपराजको अपनी निपुणता तथा सुप्रबंध के कारण लाट देश प्राप्त करना लिखा है। यदि वह ऐसा न लिख कर स्पष्टतया लिख देता कि वारपने अपने भुजबलसे लाटदेश प्राप्त किया तो वह अपने प्रयत्न में सफल होता । उसी प्रकार प्रशस्तिकार वापराजके पुत्र और उत्तराधिकारी का वर्णन करते समय अपने छिपाए हुए भावका भण्डा फोर करता है । प्रशस्तिकार लिखता है कि "गोरगिराज स्ववंशका भवन हुआ । इसने भगवान वाराह रूप किष्णु के समान शत्रु रूप समुद्र जलसे प्लावित लाटदेशका उद्धार किया" । इससे स्पष्ट है कि गौरगिराज के राज्यारोहण समय के पूर्वहो लाटके कुछ अंश पर शत्रुओं ने अधिकार कर लिया था। जिसको इसने अपने भुजबलसे उद्धार किया। पाटण के चौलुक्यों के इतिहास से हमें विदित है कि वारप को लाट देश प्राप्त करनेके पश्चात् अपने जीवन पर्यन्त मूलराज और उसके पुत्र चामुण्डराज से लड़ना पड़ा था। और अन्तमें वारप चामुण्डके हाथ से मारा गया था । एवं उसके मरने के पश्चात लाट देशके कुछ भाग पर पाटणवालोंका अधिकार हो गया था । जिसका उद्धार गोरगिराज ने किया। अन्ततोगत्वा प्रशस्तिकारने वाराहकी उपमाद्वारा अवान्तर रूपसे वारपके स्वामी वातापिके चौलुक्य राज तैलपदेव द्वितीयका संकेत कर दिया है। जिसको छिपानेका प्रयत्न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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