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अराकिरी प्रशस्ति
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विवेचन ।
लाट बासुदेवपुर खण्ड,
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प्रस्तुत शिला लेख मयसूर राज्य के सिमोगा जिला के हो अराकिरी नामक ग्रामके नागेश्वर मंदिर में लगा है। यह लेख अ ओरदेया केशीमाया के दानकी प्रशस्ति है । प्रशस्ति कथित द नागेश्वर देवके भोग राग निर्वाहार्थ किसी पण्डितका पाद प्रक्षालन पूर्वक दिया गया है | प्रशस्तिका कुछ अंश टूट जाने से यह प्रकट नही होता कि कथित पण्डित, जिसका पाद प्रक्षालन पूर्वक दान दिया गया है, का नाम क्या था और उसका नागेश्वर देव के साथ क्या सबंध था । परन्तु नागेश्वर देवके भोगरागार्थ प्रदत्त भूमिदान होने से उक्त पण्डित को हम नागेश्वर मंदिरका पूजारी कह सकते हैं ।
प्रशस्ति की तिथि शक संवत ९६९ और सर्वजित नामक संवत्सरकी पुरुष शुक्ल पचमी तथा दिन बृहस्पति वार है। प्रशस्ति लिखे जाते समय चौलुक्य कुल तिलक त्रैलोक्य मल्लका राज्य काल था और उस समय पंच महा शब्द अधिकार प्राप्त पल्लवान्वय श्री पृथिवी वल्लभ पल्लव कुल तिलक अमोघ वाक्य कांचीपुर - त्रयलोकमल्ल ननिनोलम्ब पल्लब परमनादि जयसिंह कोगली पंच शत तथा कतीपय अन्यान्य प्रदेशोंका सामन्त था ।
प्रशस्ति में राजाका नाम त्रयलोक्यमल्ल दिया गया है। हमें अन्यान्य शिला लेखों तथा शासन पत्रों और एतिहासिक लेखोसे झात है। कि वातापि के चौलुक्य राज्य सिंहासन पर शक ६६२ से ६६० पर्यन्त आहवमल्लका अधिकार था । आहमलका विरुद्ध त्रैलोक्यमल्ल और नामान्तर सोमेश्वर था । अतः प्रस्तुत लेख आहवमल्ल त्रयलोकमल्लके राज्य कालिन है और उसके राज्य के सातवे वर्षका है । आहवमल्ल त्रयलोकमल्लको सोमेश्वर, विक्रमादित्य और जयसिंह नामक तीन पुत्र थे, इनमें तीसरे जयसिंहका नामान्तर सिंहन या सींगी और विरूद बीरनोलम्ब पल्लव परमनादि त्रयलोक मल्ल था । अतः प्रस्तुत प्रशस्ति कथित कोगली पंच शत प्रभृतिका सामन्त पल्लव परमनादि जयसिंह हबमल्ल त्रयलोकमल्ल का कनिष्ठ पुत्र है ।
प्रशस्ति से प्रकट होता है कि आहवमल्ल ने जिस प्रकार अपने ज्येष्ठ पुत्र सोमेश्वरको केशवलाल प्रदेश और विक्रमादित्यको वनवासी प्रदेशकी जागीर दिया था उसी प्रकार जयसिंहको कोगली पंच शत तथा अन्यान्य प्रदेशों का सामन्तराज बना शासनभार दे रखा था। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि आहवमल्लकी आयु राज्य पाते समय और प्रस्तुत प्रशस्ति लिखे जाते समय शक ६६६ मे उसके तीसरे पुत्र जयसिंहकी आयु क्या थी ।
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