________________
चौलुक्य चंद्रिका } दोनों वंशावलियोंके तारतम्यसे प्रकट होता है कि कीर्तिवर्मासे लेकर विक्रमादित्य और जयसिंह पर्वत कोई अन्तर नहीं है । परन्तु जयसिंहके पुत्रोंके नामादि सम्बन्धमें मतभेद है। नक्सारिका ताम्रपत्र उसके पुत्रका नाम श्री आश्रय शिलादित्य बताता है और वलसाड़का ताम्रपत्र विजयादित्य, युद्धमल, जयाश्रय और मंगलराज नाम ज्ञापन करता है। अतएव दोनोंमें घोर मतभेद है। मंगलसजने उक्त क्लसाड़वाला लेख मंगलपुरीमें शासनी भूत किया था। अन्यान्य विवरणमें भी पाया जाता है परन्तु मंगलराजके लेखमें शिलादित्यका उल्लेख नहीं । यद्यपि वह नवसारीवाले लेसमें स्पष्टतया युवराज लिखा गया है इससे स्पष्टतया प्रकट होता है कि वह जयसिंहका बड़ा लड़का था।
मंगलराजके लेखमें शिलादित्यका उल्लेख न पाये जानेके दोही कारण हो सकते हैं या तो वह युवराजावस्थामें ही मर गया था अथवा मंगलराजने उसे गद्दीसे उतार दिया था हमारी समझमें उसके मंगलराज द्वारा गद्दीपरसे उतारे जानेकी अधिक सम्भावना है। जबतक इसका परिचायक कोई स्पष्ट प्रमाण. न मिले हम निश्चयके साथ कुछ भी नहीं कह सकते .
इसके अतिरिक्त नवसारी वाले प्रस्तुत ताम्रपत्र और वलसाड़वाले मंगलराजके ताम्र पत्रकी तिथियोंका अन्तर बाधक है शिलादित्यके शासनपत्रकी तिथि अंकों और अक्षरों में स्पष्टरूपेण संवत ४२१ और मंगलराजके शासनपत्रकी तिथि शाके ६५३ है। पूर्व संवत ४२१ न तो शक और विक्रम संवत हो सकता है । क्योंकि उसे विक्रम संवत माननेसे उसको हो शक बनानेके लिये १३५ जोड़ना पड़ेगा। अतः ४२१+१३५=५५६ होता है। इस प्रकार मंगलराजके लेख और प्रस्तुत लेसमें १७ वर्षका अन्तर पड़ता है। दो भाइयों के मध्य ६७ वर्षका अन्तर कदापि सम्भव नहीं : इस हेतु उक्त संवत ४२१ विक्रम संवत नहीं हो सकता। पुनश्च उक्त संवतको विक्रम संवत न माननेका कारण यह है कि यह समय शाके ५५६ के बराबर है।
और हमें निश्चितरूपसे विदित है कि वातापिके चौलुक्य राज्य सिंहासनपर शिलादित्यका दादा पुलकेशी द्वितीय आसीन था । पुलकेशीके पश्चात हमें आदित्यवर्मा और चन्द्रादित्यके राज्य करनेका स्पष्ट परिचय प्राप्त है। एवं चन्द्रादित्यके पश्चात उसकी राणी विजयभट्टारिका महादेवीके शासन करनेका भी प्रमाण उपलब्ध है। अन्ततोगत्वा शाके ५५६ से लगभग २० वर्ष पर्यन्त शिलादित्यके चाचा किक्रमादित्यको गद्दीपर बैठनेका अवसर नहीं प्राप्त हुआ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com