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चतुर्थस्तुति निर्णयशंकोद्धारः
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वसिय प्रायश्चित्तनो कायोत्सर्ग तथा शांत कहेवी कही नथी ते प्रमाणे श्रात्मारामजी मांनता, नथी ने करता पण नथी ॥ ए ग्रंथोना कर्त्ता लघुप्रावश्यकवृत्तिना तथा वृहद्दशविकालिक वृत्तिना कर्त्ता श्रागमिक गीय श्रीतिलकाचार्य होय तो ते तो देववंदनमां त्रण थुइज माने तेथी विधिप्रपादिकमां जिनपूजादि विशिष्ट कारणे वैयाaa रादि देवोना कायोत्सर्ग लाव्याबे ने श्रीचंप्रसूरिने परंपरामां थयेल श्रीशिवप्रनसूरिना शिष्य तिलकाचार्य होय तो तेनुंनी प्रतिक्रमणादि समाचारमां पण घणो हेर फेर बे ते प्रमाणे आत्मारामजी वर्त्तता होय तो ए ग्रंथ मान्य क स्या कहेवाय अन्यथा पोतानी मनमांनिती वात मांन्या मान्य करया केम कहेवाय ॥
७२ ॥ ६२ ॥ षमावश्यकविधि पूर्वाचार्यकृत. ए ग्रंथ पूर्वधर निकटवर्ति पूर्वाचार्य तथा प्राचीन पूर्वाचार्य कृत नथी पण वर्त्तमान कालथी पूर्वे थला पूर्वाचार्य कृतले एमां देवसिप्रतिक्रमाना यादिमां ने राइ प्रतिक्रमणना अंतमां शकस्तवादिके सामान्यप्रकारे एटले जघन्यप्रकारे