Book Title: Chaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Author(s): Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publisher: Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
View full book text
________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको धारः ად.
तपस्तेजोवन्हौ शलनसमनावं गतवता, प्रतिस्पर्द्धावार्थों प्रमुदितहृदा तत्कृितिनृता; तपोगोऽतु विदितमिति तन्नाम विदधे, सुधर्मादिप्रोद्यगुणामिह तु षष्ठं तदजवत् ॥ ११॥ विजयदेवमुनीश्वचोऽमृतं,
सदसि चारु निपीय ज्यहांगिरः; नृपवरः प्रददौ किल मंरुपाचलगतो मुदितोऽस्य महानिधाम् इति षष्टितमे तु पट्टके, ससुधर्मादिमहातपोनिधाम्; गण एष दधन्विपक्षिणो, विगणय्य प्रथितोऽथ मेदिनीम् पर्यायांतरनाग्गो, द्विषष्टितमपट्टके; कलानृइत्लमनव, तस्मात्क्षीराब्धिसंनिनात् ॥१४॥ सकलगुनसमीक्षणैकदछः,
स विजयरत्न इति प्रसिदसूरिः; निजपरनिगमागमझरत्नं,
तदधिजं प्रवदंति यं महांतः कुमाप्रकर्षात्प्रथितं कुमायां,
क्षमाधरेषु हितदशि कम्; क्षमानिधं रत्नमनूततोऽक्षा,
॥१२॥
॥१३॥
॥१५॥

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538