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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५०१ निःकेवल वैयावृत्त्य करवावाला देवताननाज कायोत्सर्ग नथी करता, किंतु आदि शब्दना ग्रहणथी शांति कराणं इत्यादिक पण ग्रहण करवा, तथा प्रनत कालात् अर्थात् बहु दिवस कायोत्सर्ग कस्याथी सांप्रतकालमां नपश्वनो नाश थाय ते वास्ते विघ्न संनव थयां पूर्वोक्त देवताना नित्य कायोत्सर्ग करेने ए गाथार्थ ॥१००३॥ एवी रीते स्थित सिह थयां शुं करवू ते कहे ॥ विघ्न विघातनने वास्ते प्रात्माने उपसर्ग निवारण होवाथी अने जिनगृहनी रक्षा करवाथी वली देवनवननी पालना करवाथी,नित्य ए देवताननी पूजा करवी जोइए.
आदि शब्दथी तेमना कायोत्सर्ग पूजा अवसरे करवा जोइए. कोने करवा जोइए? धार्मिक जनोने; इहां ए अभिप्राय डे के, मोदने अर्थे ए पूर्वोक्त देवताननी पूजा तथा कायोत्सर्गादि करे तो अयुक्त ने, परंतु विघ्न निवारणादिकने निमित्ते करे तो कांश अयुक्त नथी; उपश्व प्रवृत्ति निवारण होवाथी तथा उचित प्रवृत्तिने अर्थे पूजा तथा पूजा अवसरे कायोत्सर्ग करवा युक्तज , किंच शब्द अभ्युच्चयार्थमां ने ए गाथार्थः ॥१००४॥अभ्युचय शेष कहेवा योग्य जे राने, ते कडे ॥ मिथ्यात्व गुण सहित प्रथम गुणस्थानमां वर्त्तवावाला नरेश्वर जे राजादिक तेमने पजा प्रणाम रुप नमस्कारादिक करे ले ते