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परिछेदः १४
पृष्ट ३३ माथी ष्टष्ट ३४ मा सूधी सात चैत्यवंदनाश्री श्री प्रवचन सारोदार वृतिनो पाठ लखी पृष्ट ३५ मामां जापाने ते लखे बे के, इस पाठ मे पडिक्कमणेकी श्राद्यंतमें चार थुकी चैत्यवंदना करनी कही हे * ए लेख पूर्वाचार्योंना वचनथी विरुद्ध बे केमके श्री प्रवचन सारोदार वृत्ति प्रमुख जैन शास्त्रोमां तो सातवार चैत्यवंदना कही तेमां प्रतिक्रमणना याद्यंतनी चैत्यवंदना ण तथा चार थुनी करवी कही नथी निःकेवल चैत्यवंदना कही बे. ते जघन्य तथा जघन्यनत्कृष्टज संनवे बे, केमके जैनशास्त्रमां सात वार तथा नव वार चैत्यवंदना अहोरात्रमां करवी कही डे, तेमां सात वारनी चैत्यवंदनामांथी पांचवारनी तथा व वारनी चैत्यवंदना तो जघन्यनत्कृष्ट जेदनी करवी कही ते नववारनी चैत्यवंदनामांथी त्रिकाल जिनचैत्यनी वंदना यथाशक्ति नव दनी करवी कही बे ने शेष च्यार वारनी जघन्योत्कृष्ट नेदनी करवी कही वे । त्यां प्रथम श्री बाहु स्वामीकृत पयन्नानी गाथा पूर्वे लखी आव्या बीए तेमां जिन देरासरमां उजय काल उत्कृष्ट वंदना कहीने दिवसमां पांचवार तथा कारणवशे जघन्या चैत्यवंदना कही ते जिनगृहमां प्रातः संध्या चैत्यवंदना बे अने शेष पांच चैत्यवंदमांना ते गोचरीवेला जिन चैत्यना १ नोजन स