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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६०ए विद्यमानेप्रस्थकोयमितिव्यपदेशः इत्यादि ॥ ___ ए पाठमां आचार्य शब्दे श्री सुधर्मास्वामी तथा जंबुस्वामी प्रनवसृरि प्रमुख कह्या तेमनी प्रनालिका एटले परंपराए करीने आवेला सूत्र व्याख्यानोपनकिताचरणा तेने नछेदन करे ते जमालिनी पेठे सम्यक्त्वनो विनाश पामे एम कडं. तथापि अात्मारामजी आनंदविजयजी चतुर्थस्तुति निर्णय पृष्ट ॥ १७४ तथा १७५ मां श्री सूयगडांगनियुक्तिनी गाथा लखीने जे अर्थ लखेडे ते वृत्तिकारना अनिप्राय मुजब अर्थ नथी तेथी पोताना करेला अर्थथी पोतेज जमालिनी पेठे नाशने प्राप्तमान थायडे, केमके वृत्तिकारकत्.अर्थना अनिप्रायथी तो गणधर पूर्वधरादिक आचार्योनी परंपराए आवेली आचरणा अर्थात् श्री नबाहुस्वामीजी प्रमुख पूर्वधर पूर्वाचार्योनी करेलीत्रण थुश्नीयाचरणा बेदीने एकांते चोथी थुइ स्थापन करे ते जमालिनी पेठे सम्यक्त्वनो नाश करी अनंत संसार वधारे ए अनिप्राय सूचन थायडे ॥ तथा वनी चतुर्थस्तुति निर्णय पृष्ट १४ए तथा १७५ मां आत्मारामजी आनंदविजयजी लखेडे के श्री अनयदेवसूरिजीने श्री स्थानांगसूत्रकी वृत्ति में श्रुतज्ञानकी प्राप्तिके सात अंग कहेहै ॥१॥ सूत्र ॥२॥ नियुक्ति ॥३॥ नाष्य ॥४॥ चूर्णि ॥५॥ वृत्ति