Book Title: Chaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Author(s): Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publisher: Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh

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Page 485
________________ ६ए परिछेदः १६ ॥६॥ परंपरायः॥ ॥ अननव ॥इत्यादि लेख श्री स्थानांगसूत्र वृत्तिमां तो प्राये जणातो नथी पण श्री यानंदघनजीकृत चौवीसीमां श्री नमिनाथजीनी स्तवनामां समयपुरुषना अंग कह्यां तेमांअर्थकारे सिद्धांत पुरुषना ब अंग ग्रहण करयां ले. ते पाठ ॥ चूरानाष्यसूत्रनियुक्ति वृत्तिपरंपरधनुन वरे समयपुरुषनांअंगकह्यांए जे देतेडरनवरे ॥षट०॥॥ अर्थ ॥ अहोमारीशुक्ष्क्षा परमेश्वरनुं नत्तमांगरूप जैन-संबंधित समयपुरुष तेनांग अंग ॥१॥ पूर्वधरकत बुटकपदनी व्याख्या ते चूर्णि ॥२॥ नाष्यते सूत्रोक्तार्थ ॥३॥ सूत्रते गणधरादिकत सूत्रवचनमात्र ॥॥ पूर्वधारीकृत नियुक्तिवचन.॥५॥वृति ते टीका निरंतरव्याख्या ॥६॥परंपरधनुनवते गुरुसंप्रदायथी अननव के यथार्थ स्मृतिथी निन्न तात्कालिक ज्ञाने ए रीते समय के सिझांतरूप पुरुषत्व धर्मवंतना ए पूर्वोक्त चूर्णनाष्यादि अंग तेने जे प्राणी परनवनी बीकने अवगणी नि. नर्य थको उन्जेदीने ममत्वरूपरसे हीनाधिक नाषे ते प्राणी उरबुही अथवा रनव के पुष्टनवगामी जाणवो ॥॥ ए पाठमा पूर्वधरादिक गुरु संप्रदायथी प्रावेली यथार्थ स्मतिने परंपरा अनलव पंचांगीमां कह्यो, ते परंपरा अनुनवे आवेलीजे परंपरा ते श्रुतज्ञानप्राप्तिनु

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