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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६३१ दिन दृश्यत इति ॥
ए पातमा तपागच नायक श्री सेनसूरिजीए प्रश्नोत्तर करयो के सरस्वती अने श्रुतदेवी ए बे पर्यायांतर नाम जणाय डे, परंतु तेनां आयुनां प्रमाण तथा निकायादि जैनशास्त्रोमां कोई काणे देखातां नथी,ए अनिप्रायथी १ श्रुतदेवी कहो तथा सरस्वती कहो, इत्यादि अनेक पर्याय नाम जिनवाणीनांज संनवे बे, अन्यथा जो व्यंतरादिनिकायमां श्रुतदेवी होय तो तेना आयुर्मान तथा निकायादिक पण शास्त्रोमां दर्शाव्या जोइए तथा श्री अमदावादमां पांजरापोलना झाननंमारमा प्राचीनाचार्य कृत साधु प्रतिक्रमण सूत्रस्तबक जीरण पुस्तकमां श्रुतदेव तीर्थकर गणधरादिकने कह्याले; ते जेमतेम अदर टांकिए बीए, सुयदेवयाणं अासायणीए.
अर्थः ॥ सुय० श्रुतदेव तीर्थकर तथा गणधरादिक तेहनी अाशातना करी हुए तेः ॥ तथा धीरविमलजी शिष्य नयविमलजी अर्थात् ज्ञानविमल सरिजीकत यति प्रतिक्रमण सूत्रस्तबकमां श्रुतदेवीने जीनवाणी कही. तत् नाषा पाठः ॥ सुयदेवयाए प्रासायणाए॥
अर्थः ॥ श्रुतदेवता वीतरागनी वाणी पांत्रीस वाणी गुणयुक्त हती तो केम पाखंमी प्रतिबोधाता नथी इत्या दिरूप तथा श्रुतदेवी शासनाधिष्टायकानी तथा श्री