Book Title: Chaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Author(s): Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publisher: Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh

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Page 472
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको-चारः ६७५ उपयोगदानार्थ तथा विघ्नविनाशनार्थ तथा तद्विषयिक गुणवर्णनात्मक वैयावृत्यकर देवोनी स्तुति कही बे तेथी स्वकृत पूजादि उपचार तथा क्षुपड्वादि निवारण कारणे चतुर्थस्तुति कहेवी सिद्ध थायडे, पण पूजादि कारणविना कहेवी सिद्ध थती नथी; अने गुणवर्णन बे ते एकांते श्लोकादि स्तुति रूपेज नथी नाषणरूपे पाढे, जेम कोइ रिहंतादिकना च्यवर्णवाद बोलतो होय तेने अरिहंतादिकना गुणवर्णव बोली समजावे, तथा व्याख्यानादि अवसरे जेनो वर्णवाद घ्यावे तो तेनो अवर्णवाद टाली वर्णवाद करे, जेम देवोनो याश्चर्यकारी केवो याचार बे, जे विषयमां श्रासक्त बे तो पण जिनद्भुवनमां हास्यादिक संसारी क्रिया करता नथी. एम समदृष्टि देवोनी प्रशंसा करवी तेमज मिथ्यादृष्टि देवोना मार्गानुसारि धर्मकृत्यनी प्रशंसा करवी ते देववर्णवाद कहिए. तथा ग्रंथांतरमां जे अनुमोदनीय ते नियमा प्रशंसनीय, ने जे प्रशंसनीय ते नजनाए अनुमोदनीय; जेम तीर्थंकरादि प्रशंसा प्रशस्तपणाथी प्रशंसनीय, अनुमोदनीय, जय पण होय ने मिथ्यादृष्टिनी प्रशंसा ते प्रशं सनीय परं न अनुमोदनीय जिनाज्ञा बाह्यधर्मपणाथी तेनी प्रशंसा अतिचार रूप, पण प्रयोजन विशेषे कदाचित् कोइनी प्रशंसा समदृष्टिने करवी पडे पण प्र

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