Book Title: Chaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Author(s): Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publisher: Marudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 481
________________ ६८४ परिछेदः १६ चार अंगीकार करो बे ते उल्लंघे, तथा प्रमादना दोषथी प्रविधि एटले विधि विपरीत करे, तो प्रायश्चित्त पांमे. इहां परिहंतादिकना गुणवर्णनमां पण कालवेला समय लंघिने दोष प्रतिपादन करयो तो देवादिकना वर्णवाद विना अवसरे करवामां दोष केम न होय ? अर्थात् होयज जेम मंत्रादि विधानमां देवाना वर्णवाद होय बे पण कालवेला समयोक्त करे तो फलदायी थाय ने विपरीत करे तो महादोष कारक थाय ते माटे देवादि - कनो वर्णवाद पण जे अवसरे करवानो होय तेज - वसरे करवो श्रेय बे. अनं अतिप्रसंगेन. वर्णवाद रूप अंत्यमंगल प्रश्नोत्तर समाप्त ॥ तथा श्लोकादि स्तुतिरूप गुणवर्णन करवे करीनेज सुल्लनबोधी कर्म उपार्जन करे तो श्री ठाणांगसूत्रना पाठमा आचार्य तथा चतुविध श्रमण संघना पण वर्णवाद बोलवा कह्या बे तेथी श्राचार्य तथा चतुर्विधसंघनी पण श्लोकनिबंधनरूपे देववंदनमां स्तुति करवी जोइए, ते प्रमाणे स्वगच्छ तथा परगमां कोइ पण करतो नथी तो ते शुं आचार्य तथा चतुर्विधसंघना गुणवर्णवना घातक तथा दुर्लनबोधि कहेवाय ? पितु नज कहेवाय. केमके गुणवर्णव ते एकांते श्लोकादिस्तुति निबंधनरूपे नथी नाषणरूपे पण बे, कारण के पूर्वाचार्यांने वारे पूजाप्रतिष्ठादि कारणवि

Loading...

Page Navigation
1 ... 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538