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परिजेदः १५ चतुर्थस्तुतिनिर्णय पृष्ट १५२ मां नित्य प्रतिदिन सहाय्यनिमित्ते क्षेत्र जुवन देवताना कायोत्सर्ग प्रमुख स्थापन करे जे; ए पण एमनी असत्य कल्पना . पण सादेप कल्पना नथी, केम के नित्य प्रतिदिननी माझा कोई पूर्वधरोना ग्रंथमा देखाती नथी,अने पंचवस्त्वादिक ग्रंथोमां देवसिक प्रतिक्रमण विधिना अंतमा लखेडे, ते परिक चोमासी संवहरी प्रतिक्रमण पण देवसिक प्रतिक्रमण विना न होय, ते माटे पारवी विगेरे संपूर्ण करवाना देवसि प्रतिक्रमणमां लखे, पण नित्यना देवसि प्रतिक्रमणमां नही. जो नित्य प्रतिदिन करवा अर्थे पंचवस्तुकनो लेख होत तो, देवसिक प्रतिक्रमणनी विधि संपूर्ण थया पली "बायरणाए सूयदेवमाइणंउसग्गो" इत्यादिपाठने लगती पादिक प्रमुख देव देवतादि कायोत्सर्ग प्रतिपादक "चठमासिएवरिसे होइखितदेवयाउसग्गो"इत्यादि पूर्वधर कत गाथानोप्रमाण न लखत, अने जो पूर्वधरकत गाथानो प्रमाण जख्यो तो तेथी एमज सिह थाय बे के पंचवस्तुकारे पण पाक्षिक प्रमुखमांज क्षेत्र देवतादिकना कायोत्सर्ग प्रतिपादन करया बे, अन्यथा नित्य प्रतिदिन प्रतिपादन करयां पूर्वधरोना वचन विघटमान थाय, ने प्राझानंग दोष प्राप्त थाय तथा नि यूक्तिमा “उनियहुंतिचरिते दंसणनाणेअहोइशक्तिको सुत्र