________________
५३२
परिछेदः १३ आत्मारामजी खानंदविजयजीए बनाव्युं, तेमां पोते पोताना हाथथी शासन देवतानुनी पूजा प्रमुख नक्ति यागारि सम्यग् दृष्टि श्रावकोने करवी लाख तो एगारी सम्यग् दृष्टी श्रावकोने तो प्रर्थात् निषेध थइ.
नेागारि सम्यग् दृष्टी श्रावक पण सम्यक्त उचरतां जे जे कारणना यागार राखेबे, तेते कारण अपवाद कारणे सेवे बे, पण उत्सर्गे सेवता नथी; तो आागारि श्रावकने पण कारणे शासन देवता प्रमुखनी नक्ति करवी अर्थात् सि थ ने कारणे शासनदेवता प्रमुखनी जक्ति करवी सि-६ थइ तो चोथी थुइ पण अपवाद कारणे करवी अर्थात् सिद्ध थइ. केमके ढुंढकमति जेठमलजी विरचित समकितसार जाग १ पृष्ठ ३२ मामां लखेबे के, " वली ए साब तो सूत्र मध्ये बे, जे कार्यविशेषे लोकीकपदे समदृष्टीने श्रावकने अन्य देव मानवा पडेबे
नेते कशे जे "सइज" श्रावक देवतानी साद्य न वांडे, तो तमे कहोगे जे चोवीस तीर्थंकरना चोवीस जद चोवीस जहिणी रक्षा करे बे. वली शासन देवता सहाय करे बे, तेमनी थुइयो पडिक्कमणामां तमे कहोबो, चार तीर्थ सहाय न वांबे, तो ए जद जक्षिणी केहनी रक्षा करतां होसी वली शेत्रुंजा उपर चक्केसरी माताने कीम पुजोढो" ॥