________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोचारः. ५११ मा पोतेज लखे ले के जे कर मोतके अर्थे न पूर्वोक्त देवतायोंकी पूजादि करे जब तो अयुक्त हे परंतु विघ्न निवारणादिक के निमित्त करे तो कुवनी अयुक्त नही हे एम लखीने वली चतुर्थ स्तुति निर्णय टष्ट १३७ मां नखेडे *तथा नोले श्रावकों कोनीपूर्वोक्त देवतायोंका तप करना यहनी मोदमार्गही कहाहे* ए रीते काणे ठेकाणे असंबह लखाण करेठे, पण नव्य जीवोनेविचार करवो जोइए के जैन मतमां सूर्य समान श्री हरिन सूरिजीकृत पंचाशक मूलमां अने नवांग वृत्तिकारक श्री अनयदेव सरिजी कृत पंचाशक टीकामां नोला लोकोने मार्गनि रुचि कराववाने रोहिणी अंबिका प्रमुख देविनने उद्देशीने तपकरवा तथा तेमनी पूजा करवी कही बे, ने ते तप प्रमुख नपचारथी मोद मार्ग कह्यो ते वांबा रहित अनुष्ठान थवानु कारण,तेथी कह्योडे,पण वांगासहित अनुष्ठान करवू ते मोद मार्ग कह्यो नथी. तथा तत्त्व वेत्तानएतो प्रथमथीज प्रागम विधि प्रालंबन करीने वांडा रहितज तप प्रमुख अनुष्ठान करवां कह्यां, पण वांडा सहित करवां कह्यां नथी; अने पूर्वोक्त देवतानना तप प्रमुख डे ते वांडा सहितज होय, पण वांडा विना होय नहीं, ते माटेज पूर्वोक्त जीवानुशासनमां श्री देवसूरिजीए तत्ववेत्ता पुरुषोने पूर्वोक्त देवतानने उद्देशीने पु.