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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५१३ ममां एम कहेलुं , तेमज श्री आवश्यक चूमिमां श्री वजस्वामीना चरित्रमा कडं के श्री वजस्वामी साथे अणसण ग्राहक साधुनने देवतानो उपसर्ग थयो तेथी श्री वज्जस्वामी अन्य पर्वत नपर गया,त्यां देवतानो कायोत्सर्ग करयो.ते देवी जागृत थमने कहेवा लागी के, तमे मारा उपर मोटोअनुग्रह करयो,एम कहीने आज्ञा दीधी. ॥ए अर्थ दीपिकानो पाठ इहां लख्यो जे ते पारथी पूर्व पाठ तथा उत्तर पाउनो परमार्थ पूर्वे शंका समाधान सहित लख्यो ने ते ग्रंथ गौरवना जयथी लग्यो नथी, पण चतुर्थ स्तुति निर्णय पृष्ट १३८ मां वंदितासूत्रमा सम्मदिछीदेवा दितुसमाहिंचबोहिंच॥ यह पाठ तो तत्ववेत्ता श्रावककोंनी प्रायें नित्य पठनमें आता है. इस वास्ते पूर्वोक्त देवतायोंका तप पूजन कायोत्सर्ग अरु थकहनी, जानकार श्रावकोंको करनी चाहिये, यह सिह हुआ ॥एम आत्मारामजी आनंदविजयजी बल करीने लखेटे पण ॥ सम्मदिही देवादि पाउथी विघ्न निराकरणादि कारण विनातत्ववेत्ता जाणकार श्रावकोने देवादिकने उद्देशीने तपादि यावत्थुइ करवीसिथती नथी केमके ॥ सम्मदिठीदेवा दितुसमाहिंचबोहिंच॥ ए पाठमां तो समाधि कही ए चित्तनुं स्वस्थपणुं, अने बोधि ते परलोकमां जिन धर्मनी प्राप्ति एटले हुं परनवमां
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