________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
२४
पी माटे साधु पण एम प्राशातना टालेबे तो, गृहस्थो ने तो अवश्य नजीरीते श्राशातना वर्जवीज एमां शुं अधिकते.
·
झिगंध. ए वे गाथानो नावार्थ ए वे साधु जे बे ते चैत्यमां न रहे. अथवा चैत्यवंदनने यंते शक्रस्तवादि कहने नजीक थुइयो श्लोकत्राप्रमाणनी एवी प्र विधानने श्रर्थे ज्यां सुधी पढे, जेम पक्किमणाने अंते मंगलने पर्थे णथुइ पढे तेम, इहां पण पढे त्यां सुधी चैत्यगृहमां साधुने रहेवानुं कह्युंडे. कारणविना अधिक न रहेतुं ने जो कोइ लोगस्स १ पुस्करवरदी २ सिबुदा ३ ए त्रज थुइ एवो अर्थ कहे तेने कहे बे के सिन्हाviबुझाए त्रण श्लोकसुधीज पाठ कहेवो. तेमांतो संपूर्णवंदनानो यन्नाव एटले संपूर्णवंदना न थाय. अने उनयकाले तो चैत्यमां संपूर्ण वंदना कहे तो तेनानावनो प्रसंगथयो. केमके, त्रणश्लोकना पाठ पढी चैत्यमां न रहेवुं ए आज्ञा तेणे करीने प्रणिधाननो सद्भावथयो तेथी ए अर्थ केम घटे ने यागमम तो एम कह्युं बेके, वंदनाने ते प्रणिधान, जेम वंद नमंस ए सूत्रनी वृत्तिमां, वांदे ते प्रतिमानुने, चैत्यवंदनविधिए करीने, प्रसिद्ध नमस्कार करे पढी प्रणिधानादिक योगेकरीने, एक कहेवाश्री त्राणस्तुतियो इहां प्रणि
३२