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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
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एम मलीनता शुं राखोटो एवं करवाथी तमारी खाजिविका केम चालशे केमके जेम मंखली चित्रामणनां पाटीयां ते मेलां राखे तो तेने कोइ पण न पूजे खने जो नजलां राखे तो लोक बधाए पण तेने पूजे एम तमो पण वारंवार पूजवादिके करी जो देरामां नजलुं राखशो तो बहुलोक पूजा सत्कार तमारो करशे एम कहे ने जो ते पूजारा देवनी याजिवीका वृति पोते खाता होय ने कह्युं न माने तो तेने निळंबीने कहे जे पापिन एकतो तमे देरानी जिवीका खानुंढो बीजुं देरां पण नथी पूजता एम कहे बते पण ते जालादिक दूर नकरे तो प्रन्नवृत्तिए कोइ न देखे तेम साधु पोतेज जालां दूर करे एम सामान्ये चैत्यनुं कर्तुं बे तथा निश्राकृत निश्राकृत बन्ने चैत्यमां त्रण स्तुति कहेवी अने जो अवसर न होय तो बधाए चैत्यमां एक एक थुइए चैत्यवंदना करवी एम प्रागमनुं कयुं मानी विधि - विधि कृत प्रमुख चैत्य सर्व वांदवां ॥ तथा श्रीप्रवचनसारोछार मूल वृत्तिमां श्रीनेमिचंद्रसूरि तथा श्रीसि-5सेनसूरिजिए पूर्वधर अनुयायि त्रणथुनी चैत्यवंदना कही तेपाठ श्रागल प्रस्ताव उपर लखाशे तथा श्री दिनकर मूलमां पण पूर्वधर अनुयायी त्रण थुइनी चैत्यवंदना कही.