Book Title: Chandonushasanam
Author(s): Anantchandravijay
Publisher: Chandroday Charitable and Religious Trust

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Page 173
________________ १०८ छंदोनुशासन ओअह समुल्लसन्ति दुव्वारमालिआओ । वासयपंजरेसु सुत्ताओ सारिआओ, तह अविलंबिआओ जंति अहिसारिआओ।।'' ४० गन्तचः पचुपाः खण्डोद्गतम् ॥ गुर्वन्तश्चतुर्मात्रः पञ्चमात्रश्चतुर्मात्रपञ्चकम् पञ्चमात्रश्च । समे जो लीर्वा खण्डोद्गतम् । यथा “खंडुग्गयमिदुबिंवमिणमज्जवि अहिणवकिसुअकुसुमसरिसयं, नहु जा चंदिमाइ तिमिरभरं किर परिदलिऊण पयडइ हरिसयं । वम्मीसरभउस्स सरनिअरेहिं अइदूसहिहिं पहरिजंतओ, अहिअंता संपइ अहिसरणे पयट्टइ जुवइजणो तुवरंतओ।" ४१ चपाचीपाः प्रसृता ।। चतुर्मात्रः पञ्चमात्रद्वयं चतुर्मात्रचतुष्टयं पंचमात्रश्च प्रसृता यथा “जं किर मुद्धिआइ तीए अहिणवमहुसमयलच्छितुवरिजंतओ, पसरिअमलयमारुओ नहु सहाइ तुह विरहम्मि सुरूव छिबंतओ । तस्स व चितिऊण पडिखलणकारणं किरइ रुद्धनहयलवहाओ, किर उण्हुण्हिआओ, घणनीससिअसमोरलहरीओ अइदूसहाओ ।” ४२ ०चुर्दो नौजे जो लम्बिता ॥ पञ्च चतुर्मात्रा द्विमात्रश्चैको । नौजे जगणलल्लम्बितागलितकं । यथा 'कइलासतुलणपयडिअबहुवाहपएण, संजणिअतिअसमंडल बहुबाहपएणं । आलंबियखयकारण दसासएण वणे नीआ सीआ तेणं दसासएण वणे।" ४३ ०सौजे पैर्विछित्तिः ॥ सैव लम्बितौजे पगणैर्विच्छत्तिर्गलितकमछौ यमिते । यथा “रणरणंति जत्थ पमत्ता कुसुमेसुसिलीमुहा, होति जत्थ लोहदूसहा कुसुमेसु सिलीमुहा । विच्छित्तिपरो तरुणीअणो विणा विहु महुसमओ, विन्भमइ जत्थ समुत्थरइ एस इह महुसमओ ॥” ४४ चापचपदा ललिता ॥ चद्वयं पचपदाश्चाङ्ग्रौ यमिते ललितागलितकं यथा “मत्तमयरपुच्छच्छटोहभग्गवणराइअंतीरसहंतलवंगलवलिकणइवणराइअं। नहमंडलगरुअनिरंतर विविह घणवालय उअहिं पेच्छ ललिअगत्तिपअं घणवालयं ॥"४५ ०उभे विषमा । उभे विछित्तिललिते ललिताविछित्ती वा संकीर्णे विषमागलितकमझौ यमिते यथा “तरलं दीहत्तणेणं पाविअकण्णमग्गं, विसमत्थ मोहसायरे करेइ कण्ण मग्गं । एअंतुह नयणजुअलयं सुन्दरि

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