Book Title: Chandonushasanam
Author(s): Anantchandravijay
Publisher: Chandroday Charitable and Religious Trust

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Page 184
________________ छंदोनुशासन ११९ कल्लोलमालिआतरण संगनिव्ववि अमलयमारु अझडप्पहल्लं(लं) तविविह बहुवेल्लिगहणघणकुसुमगोच्छउच्छलिअप उरपिंजरप रायप डिहत्थदह दिसा चक्क दंसणुप्पण्णुपिययमाभरणमिलिअमुच्छापहारनिवडत पहि असंघा यरुद्ध मगंतरदुसंचरधरे । पप्फुक्लिअसघण किसुयसमूहकणिआरकुंजवरकं चणा र केसरलवंग चंपयपियंगुमल्लीमहइलमा हविविआणकं केल्लितिलयकुरुबय पिया लपुन्नागनागकेसर सुवण्णके अइकुडंगपाडलतमा लनोमा लिउल्लप सरंतपरमपरिमलघचक महमहिअसमत्तवणंतरे, मा वच्च कंतचचूण मं इमं मयणपीडिअं तरुणिसत्थचञ्चरिविणो (वच्चरिविणा) - असमसी सनददंडा हिघायसद्दतरालतालाणुलग्गघुम्मंतमद्दलोद्दामपाडपडिवन्नमंजुहिंदोल भंगिआ लवण रेहसंबद्ध वेणुविव रोल्लसंत सर मे असाहण टठाणसहम्मि वसंतए " अत्र समस्थाने जो लीर्वा तथान्त्याच्चगणात्प्रागेकश्चगणो जो लीश्च न कर्त्तव्यः । इत्याम्नायः । ९१ ● मालागलितकपादान्ते विषमचावृद्धौ वैः || मालागलितकपादस्यान्ते विषमसङ्ख्यस्य चगणद्वयस्य वृद्धौ सत्यां वेः परं समशीर्षकम् । विषमशीर्षकमित्यर्थः । मालागलितकवच्चात्रापि समस्थाने जो लीर्वा विषमे तु जगणो न कर्त्तव्यः । यथा “हयवरखुरखणिज्जमाण महिरेणुपडलबह लिज्जमा णगयण गणुत्थरिदअविरलधारपुंजसंबलणरुद्ध लोअणविलोअणपवं चमच्छरि अपरवसो, अवयरइ समंतदो तुरिदममरनिअरो निब्भर सं चरंतचउर गसेन्नण्ब्भारवलिरनी सेस भूवलय खडह डंतमंदर सुमेरुकइलासविधगिरिनारपभुदि गिरिसिहरनिवडणाइ भरंभगुरिदंकधराइ तम्मद वरहपवरो धणुकाव मुक्कतारायविद्धकरडिघड कुंभतडनिवडिदा चिरलरंधनिब्भरझरंतसोणिदतरंगिणीरइ अबहल पंकखुप्पंत चक्करहसंवराओ एआओ भीसणाओ समरवसुहाओ, सुविसमसिसयाई निवडंति हुंकरंताई पिच्छ निसिदकरवा लबराहिधायधुम्मतयाई संपइ । इमाओ नच्चंति बहुविहसुहडकबंध पंतीओ सुरबहूमुक्कपारिजायबिडविकुसुमाओ । इत्याचार्य श्रीहेमचन्द्रविरचितायां स्वोपज्ञच्छन्दोऽनुशासनवृत्तौ आर्या-गलितकखक - शीर्षक व्यावर्णनो नाम चतुर्थोऽध्यायः । -

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