Book Title: Chandonushasanam
Author(s): Anantchandravijay
Publisher: Chandroday Charitable and Religious Trust

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Page 197
________________ छंदोनुशासन ३ ओजे सप्त समे एकादश सुरंगविलासः । यथा पई विणु तहिं, सुहयविलासु कवणु । विणुं चंदई मुहु, जामिणिहिं कवणु ४ ओजे सप्त समे द्वादश केसरम् । यथा “मेल्लि भाणु वल्लहि करि अणुराउओ । उद्दिओ ! केसरकुसुमपराओ।" ५ ओजे सप्त समे त्रयोदश रावणहस्तकः । यथा “लेहि वीण करि, धरि रावणहत्थउ । जिणमज्जणि सुरहि, दिन्न सम्व हत्थउ ।' ६ ओजे सप्त समे चतुर्दश सिंहविजम्भितम् यथा “ छुहखामुवि, जं मयजूहु न तिणु । चरइ तं अज्जविसी सीहविअंभिउ विप्फुरइ ।” ७ ओजे सप्त समे पञ्चदश मकरन्दिका । यथा " कुसुमंतरि, नवि लग्गइ अलि अवनिदियइ। आसत्तओ मालइहि बहल मयरंदिअहि।" ८ ओजे सप्त समे षोडश मधुकरविलसितम् । यथा “ जं जाइहिं, कित्ति दिअतरु धवलइ सयलु । तं जाणसु, माणिणि महुअरविलसिउ पवलु ।" ९ ओजे सप्त समे सप्तदश चम्पककुसुमावतॊ यथा “ निअइ मुणइ, परिरंभइ चुम्बइ महुसुंडओ। अलि मुज्झइ, चंपयकुसुमावट्टि निबुहुओ।" १० एवं दश। तथा ओजे अष्टौ समे नव मणिरत्नप्रभा मणिरयणपहा, पयडिअगिरिगुहु । साहइ भरहु, सयलवि दिसिमुहु ।' ११ ओजे अष्टौ समे दश कुङ्कुमतिलकम् । यथा “ रेहइ चंदो, नवपडिअकलओ । पुवदिसाए, किर कुंकुमतिलओ।” १२ ओजे अष्टौ समे एकादश चम्पकशेखरो । यथा “अलिरवगीई कयचंपयसिहर । महुसमयसिरी, ओअ जणहु मणोहर ।” १३ । ओजे अष्टौ समे द्वादश क्रीडनकम् । यथा “ सहि वडुलओ, चन्दुल्लओ पडिहाइ । रयणिवहूए, कीलणगंडुओ ताइ” १४ ओजे अष्टौ समे त्रयोदश बकुलामोदो यथा “ मन्नावि प्रिओ, जइवि हु सो कयदुन्नओ । जं महमहइ, दुसहउ बउलामोअउ ।' १५ ओजे अष्टौ समे चतुर्दश मन्मथतिलकम् । यथा “निम्मलि गयणि, समुग्गओ चंदु विहावइ। रइपरइओ, वम्महतिलओ नवु नवाइ" १६ ओजे अष्टौ समे पञ्चदश मालाविलसितम् । यथा “कमलिणिपासि,

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