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(५४) ॥ अथ पांचज्ञानना चैत्यवंदनो॥
॥ प्रथम मतीज्ञान- चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री सौभाग्यपंचमी तणो, सयल दिवस सिणगार ॥ पांचे मानने पूजीये, थाये सफल अवतार ॥ १॥ सामायिक पोसह विषे, निरवध पूजा विचार || सुगंध चूर्णादिक थकी, ज्ञान ध्यान मनोहार ॥२॥ पूर्व दिशे उत्तर दिशे, पीठ रचीत्रण सार |पंचवरण जिन विबने, स्थापीजे सुखकार ॥३॥ पंच पंच वस्तु मेलवी, पूजा सामग्री जोग ॥ पंच वरण कलशा भरी, हरीये दुःख उपभोग । ४॥ यथाशक्ति पूजा करो, मतिज्ञानने काजे ॥ पंच ज्ञानमा धुरे का, श्री जिनशासन राजे ॥ ५ ॥ मति श्रुत विण होवे नही ए, अवधि प्रमुख महा ज्ञान ॥ ते माटे मति धुरे का, मति श्रुतमा पति मान ॥६॥ क्षय उपशम आवरणनो, लब्धि होये समकाले ॥ स्वाम्यादिकथी अभेद छे, पण मुख्य उपयोग काले ॥ ७ ॥ लक्षण भेदा भेद छे, कारण कारज योगे ॥ मति साधन श्रुत साध्य छे, कंचन कलश संयोगे ॥ ८ ॥ परमातम परमेसरू ए, सिद्ध स. यल भगवान ॥ मति दान पामी करी, केवट लक्ष्मी निधान ।। ॥ ९॥ इति चैत्यवंदन ॥
॥ अथ द्वितीय श्रुतज्ञान चैत्यवंदन ॥ ॥श्री श्रुतज्ञानने नित्य नमुं, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ जाणे देखे ज्ञानने, श्रुतथी टले संदेह ॥१॥ अनाभिलाप्य अनंत भाव,
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