Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company
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(२०९)
शी.
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श्रीहथिगाउरमंडण सोहे, तिहां श्री शांति सदा मन मोहे ॥२०॥ पद्मसागर गुरुराज पसाया, श्री गुणसागरके मन भाया ॥ नरनारी जे चित्तें गावे, ते मनोवंछित निश्च पावे ॥ २१ ।। इति ॥
॥अथ श्री पार्श्वनाथ छंद ।। ॥ भुजंग प्रयात वृत्तं ॥ वंदो देव वामेय देवाधि देवं, सुरा आसुरा भामुरी सारे सेवं ॥ नवे खंडमां आण अखंड जेहनी, प्रभु कांति शी भांति नहीं विश्व केहनी ॥१॥ महादुष्ट जेह विष्ट पापिष्ट पूरा, प्रभू नामथी ते दोषी जाय दूरा ॥ आवी वाट घाटें बांधे जेह ओडा, थाये आंधला ते घणा तो न थोडा ॥२॥धरा धीश धोखो धरी धोज दाखे, रागी सेवकोनी प्रभु लाज राखे । वेरिनाथ जे वातनो जोर वाध्यो, बहु नामी बंधू पलिपास बांध्यो ॥ ३ ॥ जुठी वात जंपी हियानी उपाई, मेहले साधुने असाधु पजाई ॥ साचो तो बेली छे प्रभु तुं सदाई, स्वामी तुं सधारे वधारे वडाई॥ ४ ॥ पडि वात वांधे प्रभु पार पीछो, पिठां जिहां रूठां तिहां प्रभुनी धणी छो। साचुं करी जूटुंकरयो जोर सांसो, वेहेरी थया वांसे राखो नाथ वांसो ॥ ५॥ गुडा जे गुमानी लिये गुज्जामांथी, मुंडा जे भंभेरया भरी तीरभाथी ॥ करी क्रोधने जे करे पातकेना, तमें वारज्यो तातजी नाक तेनां ॥६॥ गति गोबरा तोबरा मुखें तुच्छा, क्ली वांकडा आंकरा दार ओछा ॥ मलेच्छा यथेच्छा गच्छे मच्छराला, प्रभु पार्थध्याने नमे ते मदाला ॥७॥ क्रोधाला भूपाला हठाला कराला, वडा धिंग त्रिसिंग महासिंघ
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