Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२.८ ) अरिहंत भणीजें, सयल जीव हितवंत कहीजे, सेवक जाणी माहापद दीजें ॥९॥ सायर जैसा होत गंभीरा, दुषण एक न मांहे शरीरा ॥ मेरु अचल जिम अंतरजामी, पण न रहे प्रभु एकण ठामी ॥ १० ॥ लोक कहे जिनजी सब देखे, पण सुपनांतर कबहुं न पेखे ॥रीश विना बावीश परीसा, सेना जीती ते जगदीशा ॥११॥ मान विना जग आण मनाई, माया विना शिवशुं लय लाई ॥ लोभ विना गुणराशि ग्रहीजें, भिरकु भये त्रिगडो सेवीजें ॥ १२ ॥ निग्रंथपणे शिर छत्र धरावे, नाम यति पण चमर ढलावे ॥ अभयदान दाता सुख कारण, आगल चक्र चले अरिदारण ॥ १३ ॥ श्री जिनराज दयाल भणीजें, करम सबै को मूल खणीजे ॥ चउविह संघह तोरथ थापे, लच्छी घणी देखे नवी आपे ॥१४॥ बीन यवंत भावंत कहावे, न कह कुं शीश नमावे ॥ अकिंचनको विरुद धरावे, पण सोवनपद पंकज ठावे ॥ १५ ॥ राग नहीं पण सेवक तारे, द्वेष नहीं निगुणा संग वारे॥ तजी आरंभ निज आतम ध्याये, शिव रमणीको साथ चलावे ॥ ॥ १६ ॥ तेरो महिमा अद्भुत कहिये, तोरा गुनको पार न ल. हीयें ॥ तुं प्रभु समरथ साहेब मेरा, हुं मनमोहन सेवक तेरा ॥१७॥ तूं रे त्रिलोकतणो प्रतिपाल, हूं रे अनाथी तुं रे दयाल ॥ तुं शर. णागत राखणधीर, तुं प्रभू तारक छो वडवीर ॥ १८ ॥ तुहि समोवड भागज पायो, तो मेरो काज चडयों रे सायो ॥ कर जोडी प्रभु विनवू तोसुं, करो कृपा जिनवरजी मोसं ॥ १९ ॥ जनम मरणना दोष निवारो, भव सागरथी पार उतारो ॥श्र For Private And Personal Use Only

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