Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 226
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७) करवावाल्लं एवं चारित्र ते पंचमहात आपी संसारमांथी बहार काढयो; एवा महारा गुरु महाराजने मारी क्रोड क्रोडवार वंदना होजो ॥ २८ ॥ धन्य छे जे दान दे छ तेने, धन्य छ जे शीयळ पाळे छे तेने, धन्य छ जे रुडी तपस्या करे के तेने, वळी धन्य छ जे रुडी भावना भावे छे तेने, ए सौने मारी क्रोड क्रोडवार वंदना होजोजी. ॥२९॥ श्लोक. श्रीशांतिनाथादपरोनदानी, दशार्णभद्रादपरोनमानी ! श्रीशालिभद्राद्परोनभोगी. श्रीस्थूलिभद्रादपरोनयोगी, धन्य छे श्री शांतिनाथ भगवानने, के जेने एक पारेवो उगारखा माटे पोतिकी काया उपरथी सर्वथा मुर्छा उतारी दीधी, ने पारेवाने उगार्यों, अने जे देवता एमनी परीक्षा लेवा आव्यो हतो ते देवता नमस्कार करी समकीत नीरमळ करी देवलोकमां गयो. माटे एवी दृढता तो श्री शांतिनाथ भगवानना जीवनेज रहे बीजा कोइने पण एवी दृढता रहेवी दुर्लभ. माटे श्री शांतिनाथ जेवा कोइ दानेश्वरी नहीं. श्री दशार्णभद्र जेवा कोई मानी नहीं, केमके इंद्रनी रिद्धि जोइ पोते अहंकार उतारी दीधो, ने संसार सर्वथा छोडी दइ दीक्षा लीधी. तेथी धर्मनुं मान बहुज वधार्यु. एबुं आश्चर्य जोइने इंद्रमहाराज पोते पगे लागी कहेवा लाग्या के हे दशार्णभद्र तारी मानदशा जोइने ते उतारवाने तारा करतां घणीज ऋद्धि में वीकुर्वी For Private And Personal Use Only

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