Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 225
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१६) राजानो जीव आदि बोहोतेर तीर्थ कर्ता, वीस वीहरमान ए सर्वेने मारी. ॥ क्रो० ॥ २४ ॥ श्री अरिहंत भगवान तथा श्री सिद्ध भगवान तथा श्री आचार्य भगवान तथा श्री उपाध्यायजी भगवान तथा श्री साधु मुनिराज भगवान ए सर्वेने मारी. ॥ क्रो० ॥ ॥ २५ ॥ ते अनंत ज्ञानमय तथा अनंत दर्शनमय तथा अनंत चारीत्रमय तथा अनंत तपमय तथा अनंत वीर्यमय एवा पंच परमेष्टी भगवान छे वळी एवं अनंत ज्ञान: अनंत दर्शन: अनंत चारीत्र: जे महारी सत्तामा छे ते प्रगट थाओ तथा सर्व जीवनी सत्ताभां छे ते प्रकट थाओ एटलज हुँ मागु छु वळी हे जीव ! तुं विचार तो कर ! जे आ संसार दुःखरुप दुःखे भरैलो छे. हळाहळ विष जेवो छे, बळती आग समान छे. वास्ते हे जीव ! तुं जाग, जाग, जो, जो, चेत, चेत, समज, समज, शुं आळस, प्रमाद करो सुइ रह्यो छे. तने कोण हितकारी छे के जे तने धर्ममा सहाय करशे ? माटे धर्म साधन करवू एज तारे करवा योग्य छे. बीजें काइज नथी. सर्वे असार छे. (श्लोक) जन्म दुःखं जरा दुःखं, मृत्यु दुःखं पुनः पुनः। संसार सागरे दुःखं, तस्मात् जागृत जागृतः।। वळी जे जीवे महारा जीवने नीगे।दमांथी बहार काढयो तेने मारी क्रोड क्रोड वार वंदना होजो. ॥२६॥ तथा मने जेणे धर्ममा जोडयो तथा सुदेव, सुगुरु, सुधर्म तेनी साची प्रतीत करावी एवा महारा धर्माचार्य भगवानने मारी० ॥ २७ ॥ तथा सर्व कर्मने क्षय For Private And Personal Use Only

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