Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 235
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२६ ) त्रण जगतना आधार ने अवतार हे करुणा तणा । बळी वैद्य हे दुर्वार आ संसारनां दुःखो तणा ।। वीतराग वल्लभ विश्वना तुज पास अरजी उच्चरुं ॥ जाणो छतां पण कही अने आ हृदय हुं खाली करूं ॥२ शुं बाळको माबाप पासे बाळकिडा नव करे । ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुं नव उच्चरे ॥ तेमज तमारी पास तारक आज भोळा भावथी । जेवुं बन्युं ने कहुं तेमां कथं खोडं नथी ॥३॥ में दान तो दीधुं नहि अने शियळ पण पाळ्युं नहि । तपथी दमी काया नहि शुभ भाव पण भाव्यो नहि ॥ ए चार भेदे धर्ममांथी कांइ पण प्रभु नव कर्यु । म्हारुं भ्रमण भवसागरे निष्फळ गयुं निष्फळ गयुं ॥४॥ हुं क्रोध अग्नियी बळ्यो वळी लोभ सर्प डश्यो मने । गळ्यो मान रुपी अजगरे हुं केम करी ध्यावुं तने १ ॥ मन मा माया जाळ्मां मोहन ! महा मुंझाय छे, ॥ चडी चार चोरो हाथमां चेतन घणो चगदाय छे. ॥५॥ में परभवे के आ भवे पण हित कांई कर्यु नहि । तेथी करी संसारमां सुख अल्प पण पाम्यो नहि ॥ जन्मो अमारां जिनजी ! भव पूर्ण करवाने थया । आवेल बाजी हाथमां अज्ञानयी हारी अमृत झरे तुज मुखरुपी चंद्रथी तो पण प्रभु । भिजाय नहि मुज मन अरेरे! शुं करुं हुं तो विभु ॥ गया ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242