Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२४) भोगेणं, सहसागारेणं, भहत्तरागारेण, सन्चसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससिस्थेण वा, असित्थेणवा, वोसिरे ॥ इति ॥ १०॥ ॥अगीआरमुं गठसहियं आदि अभिग्रहोर्नु पचरूखाण ॥ ॥ गंठसहिअं वेडसहिअं दिवसहि थिबुगसहि मुठिसहिअं पञ्चख्खाइ. अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरै ॥११॥ ॥ बारमुं चउदनियम धारनारने देसावगासिकनुं पच्चख्खाण ॥ देसावगासियं उवभोग परिभोगं पच्चख्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारैणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरै इति ॥ १२॥ ॥अथ सांझना पच्चरकाण ॥ ॥ तिहां प्रथम बीयासणं, एकासणं, निविगइ, आयंबिल, तिविहार उपवास अने छठ अटमादि जा करे तो तेणे पाणहारनुं पच्चरकाण करवू, ते आवी रीतेः ॥पाणहार दिवसचरिमं पच्चरकाइ ॥ अन्नत्थगाभोगेणं, सहसागारैण, महत्तरागारेणं, सन्चसमाहिवत्तियागारेणं वासिरे ॥ इति ॥१॥ ॥बाजुं चउबिहारनुं पच्चख्खाण ॥ ॥ दिवस चरिमं पचख्खाइ ।। चउन्विहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेण, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारैणं वोसिर । इति ॥२॥ For Private And Personal Use Only

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