Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१४ ) सम्मेत शिखरजीने विषे बीस तीर्थंकर मोक्षपदने पाम्या, ते विशे जिनेश्वर भगवाननां पगलां छे, तेने तथा सामळीआ पार्श्वनाथजीनुं देरुं छे तेमां रहेली जिनेश्वर भगवाननी प्रतिमाजीने मारी. क्रो० ॥ १८ ॥ अष्टापदजी उपर आदिश्वर भगवान् दश हजार मुनियो साथै सिद्धि वर्या ने मारी. क्रो० ॥ १९ ॥ भरत राजाए सो - नानो मासाद कराव्यो, तेमां रत्नमयी प्रतिमा चोवीस तीर्थकरोनी भरावी तेने मारी. क्रो० ॥ २० ॥ गौतमस्वामीए प्रभुनी आज्ञा लेइ पोतानी लब्धिए करी अष्टापदनी यात्रा करी, तथा त्रीशंभक देवताने प्रतिबोध करीने पंदरसे ऋण तापसोने खीरनां पारणां कराव्यां, ते पण फक्त एकज पात्रामां थोडी खीर बोरी लाव्या, पण ते पात्रामा पोतानो अंगुठो राख्यो, तेथी तेनी लब्धिए करीने एटला बघा तापसोने खीरथी तृप्त कर्या, अने ते तापसोने एवं आश्वर्य जोइ खीर भोजन करतां तेमांना पांचसोने केवळ ज्ञान थयुं, तथा प्रभु पासे आवतां रस्तामां भावना भावतां बाकीना पाँचसोने केवळज्ञान थयुं बाकीना तापसोने प्रभुनुं समवसरण जोतांज केवळज्ञान थयुं, माटे एवा लब्धिवंत गौतमस्वामिने तथा पंदरसें त्रण तापसोने मारी. क्रो० ॥ २१ ॥ गोखले, गभारे, जाळीये, माळीए, जळमां, थळमां, मोतीमां, माणिकमां, पानामां पुस्तकमां, धातुमां, काष्टमां, चित्रामणमां, परवाळामां, भोंयमां, भंडारमां उर्ध, अधो, तीच्छ लोकने विषे, अंगुठाथी मांडी पांचसें धनुबनी जे कोइ जिनेश्वर भगवाननी नानी मोटी प्रतिमा होयः तेने मारी • क्रो० ॥ २२ ॥ चोसठ इंद्रना पूजनीक, बार गुण सहित, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242