Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१८) शक्ति तो महारामा हती पण आ वखते ते जे चारित्ररुपी अनंत गणी ऋद्धि तारी पासे राखी छे, एवी ऋद्धि विकुर्वानी महारी शक्ति नथी. माटे हे दर्शार्णभद्र तने धन्य छे. माटे दशार्णभद्र जेवो कोइ मानी नहीं के जेने आत्मीक धर्मनु खरेखीं मान राख्यु माटे धन्य छे, दशार्णभद्रराज ऋषिने. शालिभद्र जेवो कोइ बीजो भोगी नहीं. केमके घणाए मोटा मोटा राजा थइ गया, तथा चकवति तथा बळदेव वासुदेव, वगेरे थइ गया पण कोइनी कथामां एवं नथी सांभळ्यु के आजे जे आभुपण देवतइ पहेयौं तथा देवदुष्य वस्त्र पहेरीने पाछा दररोज तेने निर्माल्य करी कुवामां नांखी दे, अने वळी ए शालीभद्र शिवाय बीजा घणाए भोगी पुरुषो थोडा भोगमां पांचे इंद्रीना तेवीस विषयो भोगवीने आरौिद्र ध्याने करी नर्कादिक चारे गतिमां खुंचाइ गया, ते हजु केटलाएक नीगोदमां पण हशे, ने ते कइ वखते मोक्षे जशे तेनुं कंइज नक्की नथी अने श्री शालीभद्रे तो संसारनां सुख संपुर्ण भोगव्यां अने ते सुखने एकदम छांडी, अने बहुज दुष्कर एवो संजमनो मेरु पर्वत जेटलो भार सहेजमा उपाडी लीधो. वळी बीजां एने केटलां आश्चर्यो कीयां छे, ते तो कहेता पार आवे नहीं, माटे एना शरीरनु सुकुमाळपणु केटलुं इतुं, तेज विचार करवो के एज राजग्रही नगरीनो राजामहारुपर्वत श्रेणिक राजा तथा चेलणाराणी जेवारे वीर भगवानने वांदवाने गयां ते वखत, चेलणानुं रुप जोइने केटलाएक साधु चलायमान थया, श्रेणिकराजानु रुप जोइने केट. लीक साधवी चळायमान थइ गइ, एवं अद्भुत श्रणिकराजानुं रुप For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242